पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२१९

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जाय, ( १९२ ) से पहिले यह समझा गया कि सम्भवतः लड़ाई शीत्र प्रारम्भ हो तो यह पूछा जाने लगा कि भारतीय साम्बवादियों का युद्ध के प्रति क्या रौया होगा। उस समय यह मानी हुई बात थी कि हिटलर के विरुद्ध युद्ध होने की अवस्था में सोवियत रूस इङ्गलैंड और फ्रांस का पक्ष लेगा। कुछ लोगों ने कहा कि ऐसी दशा में भारतीय साम्यवादियों को युद्ध में सहायता देनी पड़ेगी परन्तु हमारे साम्यवादी मित्रों ने इस बात का दृढ़ता से खराइन किया और कहा कि रूस के इङ्गलैंड और फ्रांस की ओर होजाने से युद्ध का सामाज्यवादी स्वरुप नहीं बदल जायगा । भारतीय साम्य- वादियों के सौभाग्य से रूस का इङ्गलैंड से गठबन्धन नहीं होपाया और स्टालिन ने सफलतापूर्वक हिटलर के साथ ( जो दो मोचों पर युद्ध करने से बचने को उत्सुक था) अनाक्रमण सान्ध की वार्ता सम्पन्न करली। भारतीय साम्यवादी, इस प्रकार, युद्ध में सहायक होने की आवश्यकता से बच गये, और अब वे स्वच्छता- पूर्वक युद्ध को सामाज्यवादी कहकर पुकार सकते थे । साथ ही साम्यवादियों के लिए यह भी आवश्यक था कि वे जर्मन-सोवियत समझौते को संकट में डालने वाला कोई कार्य न करें, अतः उन्हें जर्मन साम्यवादियों को निर्देश करना पड़ा कि वे ऐसा कोई कार्य न करें जिससे हिटलर नाराज हो जाय, श्रोर उसे ससझौते को भंग करने का बहाना मिले । समझौते को बनाये रखने की उत्सुकता के कारण, उन्हें हिटलर के शान्ति प्रयासों की प्रशंसा करके उसे प्रसन्न रखना पड़ा । ब्रिटिश सामाज्यवाद पर खूब कालिस्त्र पोती गई और उसे युद्ध के लिए उत्तरदायी ठहराया गया। यह उस सबके बिलकुल उल्टा था जो दो लोकप्रिय मोर्चे (Popular Front) के दिनों में कहा करते थे। उन दिनों फासिज्म की तुलना में ब्रिटिश साम्राज्यवाद को कम बुरा बताया जाता था और श्रमिकवर्ग