पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२२

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से थे । १६३४ में भी, अपने समाजवादी मित्रों के भारी अाह से प्रेरित होकर ही वे मंच पर पाये। ने अनेक भाषाओं के पण्डित है । प्रसिद्ध प्रोफेसर कोनिस ने, जिनके वे प्रिय शिष्य थे, एक बार उनसे मेयो कालेज में सस्कृत के प्रोफेसर बन जाने का अनुरोध किया था । काशी विद्यापीठ में भारतीय इतिहास जैसे अन्य विषयों के व पाली और प्राकृत भी पढ़ाते थे। उन्होंने बौद्ध दर्शन ग्रन्थों का फ्रेंच और जर्मन से अनुवाद किया है । और उर्दू और हिंदी पर तो उनका असाधारण अधिकार है। उनकी प्रकृति में हास्य और व्यंग का भी मधुर पुट है । एक अवसर पर अखिल भारतीय कांग्रेस समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह विवाद चल रहा था कि काँग्रेस कार्यसमिति के एक प्रस्ताव पर संशोधन प्रस्तुत किया जाय अथवा नहीं। बहुमत कार्यसमिति के प्रस्ताव का समर्थन करने के पक्ष में था। परन्तु एक प्रमुख सदस्य इस बात पर अड़े हुए थे कि अपने वाम- पक्षी रूप को चरितार्थ करने के लिए समाजवादी पार्टी को संशोधन उपस्थित करना चाहिये । इस पर नरेन्द्र देव जी बीच में बोल पड़े, "हाँ मैं अपने मित्र से पूर्णतः सहमत हूँ । पार्टी की रचना विशेषतः कार्यसमिति के प्रस्तावों पर संशोधन प्रस्तुत करने के लिए ही हुई थी । यदि हम एक बार भी संशोधन उपस्थित करने में असमर्थ रहते हैं, तो हमारे लिए फिर कोई जगह नहीं।" उनके गम्भीर वाणी में कहे गये इन शब्दों के पश्चात् इतने जोर का ठहाका लगा कि बातावरण का तनाव मिट गया, और संशोधन-पक्षी महाशय और कुछ न बोल सके। उनके अवगुणों के विषय में क्या कहा जाय ? उनके अपने प्रांत में तो कुछेक गुण समझे जाने लगे हैं। उनका पहिला अवगुण यह है