पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२४०

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शाली पड़ोसियों को नहीं भूलेगा और कुछ नही तो अपने हितों के विचार से ही अच्छे पड़ौमियों की सी नीति अपनाकर उनके साथ गैर सरकारी अनाक्रमण समझौते और पारस्परिक मंत्री के सममौत कर लेगा । इस बारे में, भारत को यह घोषणा करके अपनी स्थिति स्पट कर देनी चाहिए कि उसका अपने पड़ोमियो से अार्थिक अथवा राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि करने कराने का कोई इरादा नहीं है । उस बर्मा और लका में अपने नागरिकों के लिए कोई विशेष अधिकार अथवा रियायत नही चाहनी चाहिये । उसे भारत से बाहर रहने वाले भारतीयों को सलाह देनी चाहिए कि वे उन दंशों की साधारण जनता के साथ नादात्म्य स्थापित कर ले । भारत अलग रहने की नीति पर नहीं चल सकना । गत काल में अलग और आत्म-सीमित रहने के कारण हमें बड़ी हानि उठानी पड़ी है। हमें उस समय की पुरातन परम्पराओं को पुनर्जी वन करना चाहिए, जन चारों ओर के जगत् के साथ भारत का सम्पर्क था और जब भारत मध्य एशिया चीन, और दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों के बीच वस्तुओं और विचारों का आदान-प्रदान चलता था। पूर्व में साम्राज्य यद्यपि इङ्गलेण्ड, फ्रांस और हालेड पूर्व में अपने पुराने सामाज्यों को बनाए रखना चाहते है, परन्तु उनके लिए ऐमा करना अधिकाधिक कठिन होता जायगा । युद्ध ने पूर्वीय जातियों की गजनीतिक चेतना को अधिक जागृत कर दिया है । उन्होंने अपनी हीनता की भावना पर विजय पाली है। श्वेतों की प्रतिष्ठा को भारी धका लग चुका है, और अव उनकी साख जमना कठिन है। वर्मा मलाया और हिन्दचीन लौटकर अपनी पुरानी दासता की स्थिति पर श्राजाना कभी स्वीकार नहीं करेंगे। यदि ऐसा कोई प्रयत्न किया गया तो उसका डटकर सामना किया जायगा । स्वतन्त्रता और