पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२४९

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( २२२ ) इन सब बातों को दृष्टिगत रखते हुये कोई भी व्यक्ति विशेष आशावादी नहीं हो सकेगा । परन्तु इस सद्भावना से अापस में समझौते की बातचीत करने का तिरस्कार नहीं कर सकते । शान्ति- पूर्ण वातावरण निस्सन्देह सहायक होता है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि लोगों को संयत रूप से अपने स्पष्ट विचार व्यक्त नहीं करने चाहिये । जहाँ ब्रिटिश राजनीतिज्ञों को देश भक्ति संयमित रहने और टिप्पणी न करने में है, वहां एक भारतीय राजनीतिज्ञ का देश प्रेम इस में है कि वह संयत भाषा में अपने विचारों का स्पष्ट प्रतिपादन करे। मुझे आशा है कि हम सब अाधारभूत मसलों पर अन्त तक अड़े रहेंगे । यह पहले ही घोषित किया जा चुका है कि कोई हल जो भारत को वालकन देशों की तरह बनाना चाहेगा, हमें मान्य नहीं होगा और यह भी कहा जा चुका है कि पौंछ- पावने का प्रश्न भारत के लिए सन्तोषप्रद रूप से तय होना चाहिये । यह अधिकृत रूप से कहा जा चुका है कि यदि दो सविधान सभायें बनाई जायगी, तो कांग्रेस समझौते की बात चीत न करेगी। पं० जवाहरलाल नेहरू ने यह जना कर अच्छा किया है कि विधान- निर्मात्री सभा में रियासती जनता का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिये । श्री० एटली के वक्तव्य में रियासती जनता का जिक्र न होकर केवल राज-वर्ग का जिक्र हैं । यह बात अर्थपूर्ण है, और प्रेस कान्फ्रेंस में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए भारतमन्त्री ने वस्तुतः यह घोषित किया था कि रियासती जनता की कोई वैधानिक स्थिति नहीं है अतः उसके ऊपर कोई ध्यान नही दिया जा सकता। यह आश्चर्यजनक है एक मजदूरदलीय मंत्री ऐसी दिखावटी मुक्ति से जनता के अधि- कारों की उपेक्षा करता है । भला मजदूर दल कब से उस राज-वर्ग