पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२८३

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( २५६ ) की जनतावादी परिभाषा करना और स्वाधीनता के राजनैतिक विचार में सामाजिक रंग भरना प्रारम्भ कर दिया । सन् १६२७ में यूरोप से लौटने के पश्चात् जवाहरलाल जी ने कांग्रेस को एक नवीन रंगत देनी प्रारम्भ की। अपने विद्यार्थी काल में वे तिलक के अनुगामी सौर पक्के राष्ट्रवादी थे । परन्भु अव उनके नमाजवादी दृष्टिकोण ने उन्हें वस्तुओं का एक नया रूप दिखाया, और उनके लिये सबसे बड़ा प्रश्न यह बन गया कि जिस स्वराज्य के लिए हम लड़ रहे हैं, उसका यथार्थ स्वरूप कैसा होना चाहिये, और उसे प्राप्त करने का क्या उपाय होना चाहिये। मार्क्सवाद ने उनको वास्तविक समस्याओं के अध्ययन का वैज्ञा- निक तरीका भी दिया था। इस तरीके के प्रयोग से श्राप मनुष्यों और घटनाओं का गहरा विश्लेषण कर सकते हैं, क्योंकि आप उन्हे अलग करके नहीं देखते, बल्कि उस सामाजिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित देखते हैं, जिसकी वे उपज हैं । ऐसे विश्लेषण से श्राप प्रत्येक घटना और प्रत्येक व्यक्ति का अपने युग से सम्बन्ध देख सकते हैं और प्रत्येक व्यक्ति को उचित कार्य-भाग और वर्तमान में उसके महत्व का भी अनुमान लगा सकते हैं | जवाहरलाल जी हमारी समस्याओं पर इस तरीके को बरतने का प्रयास करते हैं. अोर हमारे सामने उनको अधिक से अधिक संलिष्ट रूप में रख देते हैं । वे वास्तविक मूल्य की प्रवृत्तियों का भी दिग्दर्शन कराते हैं | वे उन अदृश्य ऐतिहासिक शक्तियों को समझने का प्रयत्न करते हैं जिनके क्षणिक निमित्त-पात्र हम मानव हैं । इस प्रकार वे बाह्य स्वरूपों से धोखा नहीं खाते, बल्कि उनकी तह में पहुँच कर उन शक्तियों की क्रिया को समझने का प्रयास करते हैं, जो हमारी प्रांग्बों से अोझल रहती हैं।