पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२८६

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में मूलभूत अधिकारों का जो प्रस्ताव पास किया गया था वह उनकी ही सूझ थी। उन सरगर्मियों के कारण देश की राजनैतिक विचार धारा में एक अाम अग्रगामी रंगत आगई। उन्होंने कांग्रेस पर एक लड़ाकू कार्यक्रम अपनाने के लिए भी जोर डाला। उन्होंने सबसे पहिले देश का ध्यान युद्ध की विभीपिका की ओर खींचा और सामाज्यवादी युद्ध का विरोध करने के लिए उसे तैयार किया। वे भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अधिकाधिक ले गये और अपने अन्तर्राष्ट्रवाद से उन्दोंने भारतीय पक्ष के लिए संसार के प्रगतिशील लोगों की सहानुभूति प्राप्त की। उन्होंने कांग्रेस को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में गहरी दिलचस्पी लेने को तैयार किया, और अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्नों पर समय समय जो प्रस्ताव पास हुए वे उनकी करामात थे । उन्होंने शनैः शनैः गैर सरकारी भारत की (जिसकी प्रतिनिधि स्वरूप कांग्रेस थी) एक वैदेशिक नीति भी विकसित की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गान्धीजी के व्यक्तित्व ने और उनके नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा चलाये गये जन-अान्दोलन ने व्यापक रूप से बाहर का ध्यान भारतीय मामलों की ओर स्त्रींचा था, परन्तु यह भी सत्य है कि यदि जवाहरलालजी की प्रेरणा से कांग्रेस ने विश्व के मामलों में अभिरुचि न दिखाई होती, और संसार की प्रगतिशील शक्तियों का साथ देने की तीन आकांक्षा व्यक्त न की होती तो दुनियाँ ने भी भारतीय मामलों में वह गहरी और स्थायी दिलचस्पी न दिखाई है । सब स्थानों पर प्रगतिवादी लोग गान्धीजी के नवीन प्रयोग में दिलचस्पी रखते थे और भारत के स्वाधीन होने के पक्षपाती थे, परन्तु वे गान्धीजो को मुख्यतः राष्ट्रवादी समझते थे और जवाहरलालजी उनके लिए एक समाजवादी और अन्तर्राष्ट्रवादी थे भारतीय मामलों में विश्व की तीव्र दिलचस्पी मुख्यतः इस तथ्य के कारण थी कि युवक भारत जिसके नमूने जवाहरलालजी थे, अात्मसीमित रहने की