पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/४४

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मजदूरी मे संघर्ष और प्रतिद्वन्द्रिता चलती है, और दूसरी ओर साम्राज्य- बादी देशों में । आज युद्ध का खतरा बढ़ता दिखाई दे रहा है। विश्व- शान्ति के और निःशस्त्रीकरण के सभी प्रयत्न विफल हो चुके हैं । लीग श्राफ नेशन्स का मान घटकर निम्नतम स्तर पर जा पहुँचा है और राज मैतिक और आर्थिक प्रतिस्पर्धाओं का शान्तिपूर्ण हल निकालना अविका- धिक असम्भव होता जा रहा है । शस्त्रसज्जा की होड़ लगी हुई है। राष्ट्रों में ईर्ष्या और विद्वेष बढ़ते जा रहे हैं और एक नये साम्राज्यवादी युद्ध के लिए भूमि तैयार हो रही है। दूसरी ओर पूंजीपतियों और मजदूरों का संघर्ष अधिक तीव्र होता जा रहा है। कुछ देशों में श्रमिक संस्थाओं को निर्दयतापूर्वक दवा कर उनका राजनैतिक अस्तित्व समाप्त कर दिया गया है और कुछ देशो में मजदूरों पर गोलीकाण्ड और हत्याकाण्ड हुए हैं। स्वतन्त्र रूप से बोलने और सभा करने के अधिकारों पर सब जगह कुठाराघात हो रहा है और हड़ताल करने का अधिकार भी सीमित किया जा रहा है। ये तथ्य क्या बतलाते हैं ? यही कि पूँ जीवाद एक बन्द गली में घुस गया है और उसमें से निकलाना नहीं जानता ; और यह भी कि वह अपनी कठिनाई को कुछ टुकड़े फेंक कर अथवा तानाशाही से हल करना चाहता है । सम्भावना यह है, कि जैसे-जैसे संकट बढ़ता जायगा, वह अधिकाधिक फासिज्म की ओर मुकता जायगा। परन्तु पूँजीपतियों और मजदूरों के बीच का द्वन्द्र अस्थायी रूप में भले ही दब जाय, वह फिर दूने वेग से भड़केगा, और उसका अन्त एक सफल मजदूर-कान्ति में हो सकता है। बचने का मार्ग समाजवादी कहते हैं कि इस कठिनाई में से निकलने का केवल एक मार्ग है ---उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण । उनका कथन है कि उत्पादन