पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५४

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में पहुँच गया है, ऐसा नहीं है । अब तो देश विश्व-अर्थ-व्यवस्था की श्रृंखला की लड़ियाँ बन गए हैं। इसलिये अंत्र हमें क्रान्ति के उपयुक्त परिस्थितियाँ विश्व भर को पाम्राज्यवादी अर्थ-व्यवस्था में हूँढकर उन पर सामूहिक रूप से ध्यान देना होगा। यह सम्पूर्ण आर्थिक ढाँचा एक है और इसमें कुछेक ऐसे देशो की स्थिति जो औद्यं,गिक दृष्टि से पर्याप्त मात्रा में विकसित नहीं हैं, क्रान्ति की बाढ़ में विशेष वाधक न होगी। बशर्ते कि सम्पूर्ण ढाँचा सामूहिक रूप से क्रान्ति के उपयुक्त बन जाय । ऐसी दशा मे क्रान्ति पहले उन देशों में नहीं होगी जो श्रौद्योगिकी से सबसे अधिक विकसित हैं, बल्कि उन देशों में होगी जहाँ साम्राज्यवाद की शृंखला सबसे अधिक कमजोर है । इसलिये यह सम्भव है कि जिन देशों में पहले क्रान्ति हो, वै श्रौद्योगिक दृष्टि से कम विकसित हो । यही कारण था कि रूस मे क्रान्ति हुई । वहाँ साम्राज्यवादी शृंखला कमजोर थी, और पीड़ित जनता आश छोड़कर मरने-मारने के लिए तैयार थी। अदि उपयुक्त स्थिति हो, तो क्रान्ति के पहले ऐसे देश में होने की पूरी सम्भावना है जहाँ जनता आर्थिक शोषण से बर्बाद हो चुका हो, चाहे वह देश श्रौद्योगिक दृष्टि से पर्याप्त मात्रा में विकसित न हो। भारत में यही स्थिति विद्यमान है, और जैसे-जैसे संकट बढ़ रहा है, स्थिति बिगड़ती जा रही है। यह सत्य है कि अल्प विकसित देश में संक्रान्ति काल अधिक लम्बा होता है, परन्तु यह भी सत्य है कि ऐसे देश मे साम्राज्यवादी दमन के कारण कान्ति अधिक शीघ्रता मे होती है। भारत में समाजवाद समाजवाद ने इस देश में पाँव जमा लिए हैं और कांग्रेस और देश में प्रतिदिन उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है। कांग्रेप में हम