पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/६१

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( ३४ ) को नई स्वराज्यवादी टुकड़ी चलेगी। जान्ति के उपयुक्त परिस्थिति में सीधी कार्यवाही और बाकी दिनो मे रुचि के अनुकूल रचनात्मक अथवा धारा- सभाई कार्य करने की नीति हमें पसन्द नहीं है । स्थिति तो क्रान्ति के उपयुक्त ही चल रही है। औद्योगिक संकट अभी टला नहीं है और खुश- हाली लौटने के अभी कोई श्रासार नहीं दिखाई देते । भारत मे, देहात का संकट भी बढ़ता जा रहा है । और गवर्नमेण्ट ने जो उपाय सोचे है- उत्पादन को खपत के अनुसार नियन्त्रित करना, इत्यादि-वे काफी नहीं हैं। इसलिये यदि उपयुक्त नेतृत्व हमारे पास हो तो हम जन समुदाय को अपने साथ लेकर विजय पर विजय प्राप्त कर सकते है। समाजवादी सिद्धान्तो से सुमउिजत, जनता में आर्थिक चेतना और राजनीतिक संगठन फैलाने के कार्य में लगे हुए हम भविष्य की और विश्वासपूर्वक देख सकते हैं और समय आने पर भारत के संगठित जन-समुदाय को स्वतन्त्रता और पूर्ण मनुष्यता तक पहुँचा देने की अाशा कर सकते है। क्रान्ति की अगली लहर पिछली ये बहुत बड़ी और शक्तिशालिनी होगी और यह मैं श्रापको विश्वास दिला हूँ कि वह उतनी दूर नहीं है, जितनी कुछ व्यक्ति समझते है। वर्ग-भेद अधिक बढ़ता जा रहा है । उच्चश्रेणी के लोगों का एक भाग, अाने वाले सुधागे के आकर्षण के कारण साम्राज्यवादी रंग मे रँग गया है। श्वेतपत्र में जिम नवीन साम्राज्यवादी दाँचे का आभास दिया गया है, उसमे उन्हें अपनी सम्पूर्ण उचित इच्छाओं की भरपूर पूर्ति होने की श्राशा है। वैगे भी, गद्दारों की यह सेना बढ़ेगी ही । इसलिये हमें अपनी कतारों में नये शक्तिशाली सैनिक भरती करने चाहियें जो भारत के किसान और मजदूर हैं । यह हम तभी कर सकते हैं जब हम कांग्रेस के भीतर निरन्तर प्रारिक कार्यक्रम लाने का घोर उद्योग करते हैं, जिससे