पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/७१

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) गई । मेहनती जनसमुदाय की बढ़ती हुई दरिद्रता एक विकट समस्या बन गई और उससे निष्पक्ष विचारक और अर्थशास्त्री यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य हुए कि भारत की जमीदारी-प्रथा संसार की सबसे बड़ी विषमता है। अब भूमि को भाड़े का स्रोत मानने के दिन गये। पह उपयोग के लिए है; अतः उसे कृषि-कर्मियों के परिश्रम को समुचित रूप मे उपयोग में लाने का साधन ही मानना चाहिये । कृषक वयस्क हो गया है कृषकों को अपने वर्ग-संघर्षों मे नये अनुभव और नवीन राजनैतिक पाठ मिले है। उनका एकान्त अस्तित्व समाप्त हो गया है और उनका सम्पर्क उन नवीन विचारों में हो गया है जो अब तक केवल कुछ बौद्धिको तक ही सीमित थे । भूमि के स्वामित्व के विषय में जो नवीन दृष्टिकोण है वह उनमें घर करता जा रहा है। उनका निश्चित और स्थायी दृष्टिकोण और उनके अपरिवर्तनीय विचार और विश्वास, जो अब तक ग्रामो की प्रमुख विशेषता थे, तंजी से विलीन होते जा रहे है । उनके विचार करने के ढंगों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया है। उनमें एक नवीन जिज्ञासा उदय हो गई हैं और जिन व्यक्तियों की श्राज्ञा वे पहले विना सिर हिलाये मान लेते थे, उनको और अपने वातावरण को वै आलोचनात्मक दृष्टि से देखने लगे है। उनकी पुरानी उदासी, परम्परागत दबूपन, और भाग्य के भरोसे रहने की आदत बदल कर उनमे प्रफुल्लता, आशा और उत्साह की उमंग श्राती जा रही है। गांवों में एक नवीन जागृति फैल गई है और यदि हम इस अनुकुल स्थिति का उचित उपयोग करें और कृषक-हलचलो को सही दिशा की ओर प्रेरित करें, तो हम उन्हें देश की एक अजेय शक्ति अनुशासन की भावना भरने की आवश्यकता है, और चंकि वे मदेव शान्तिप्रिय रहे है अतः यह आशा की जा मकती है बना सकते है । उनमें