पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लगाई जा रही थी। काम बहुत धीमे-धीमे हो रहा था और यद्यपि काँग्रेसी सरकारों के पीछे जनता की विराट् शक्ति थी, फिर भी कुछेक प्रान्त निहित स्वार्थो के भय से तेजी से चलने मे हिचक रहे थे । अब तक जमादारो के सामाजिक दर्जे में कोई उग्र परिवर्तन नहीं हुआ है। केवल कुछ साधारण सा सहारा कृषको को दिया गया है, परन्तु उसी पर जमीदारो ने इतना हल्ला मचाया मानो कानून में क्रान्तिकारी प्राकार-प्रकार के परिवर्तन किए जा रहे थे। आर्थिक स्थिति इतनी निराशापूर्ण थी कि जनसमुदाय को चैन पहुँचाने के लिए उग्र कदम उठाने की आवश्यकता थी। जो कुछ काँग्रेसी सरकारी ने किया वह केवल कुछ अधिक श्रन्यायपूर्ण बोमो में कृषकों को मुक्त कर देने तक ही सीमित था; परन्तु उनकी दशा इतनी कष्टपूर्ण है कि बचे हुए बोझ भी उन्हें भारी और अमात्य लगेंगे और वे उनसे भी छुटकारा पाने की लगातार जोर से मांग करेंगे। यह निस्सन्देह सत्य है कि कुछ भी हो, कृषक-वर्ग फिर से ज़मीदारों को अपना स्वाभाविक नेता समझने के लिए तैयार नहीं है। जमीदार का राजनैतिक प्रभाव निश्चय ही अस्त होता जा रहा है, चाहे उनका सामाजिक दर्जा मिटाया नहीं गया हो । अब उस प्रभाव को फिर से प्राप्त करना कठिन होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि देहात में सुधार लागू करने विरुद्ध उन्होंने जो विरोध का तूफान उठाया है, वह भविष्य के डर के कारण है। वे इस तथ्य का अनुभव करते हैं कि ये वर्तमान उपाय उस नवीन युग का प्रारम्भ. मात्र है जिसमें ग्राम-व्यवस्था में ऐसे लगातार परिवर्तन किये जायेंगे कि उनका उच्च सामाजिक दर्जा निश्चय ही पूर्णतः नष्ट हो जायगा । उनके होश उड़े हुए हैं। परन्तु यह निस्सन्देह है कि यदि आज राजनैतिक सत्ता उनके हाथ मे होती, तो उनको भी जनसमूह के दबाव से बाध्य होकर-बेमन से ही सही- लगभग ऐसे ही कदम उठाने पड़ते । नाम- विकास कार्य के हथकण्डे जनसमुदाय को धोखा देने में सफल नहीं हो