पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/७५

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सकते थे। और न कृषको मे लड़ाकूपन की उठती हुई लहर को रोकना सम्भव था। उनकी अत्यधिक दरिद्रता पुकार-पुकार कर कुछ करने के लिए कह रही थी और यदि उनके लिए कानून द्वारा कुछ न किया जाता, तो वे गौर कानूनी उपायो का सहारा लेते । यह मानी हुई बात है कि कांग्रेसी सरकारों के काम में बड़ी कठिनाइयाँ थी, क्योंकि वर्तमान ऐक्ट के अनुसार उन्हें कोई क्रातिकारी सुधार करने की पर्याप्त मुविधा नहीं थी । परन्तु उन में कम से कम यह आशा अवश्य ही की जाती थी कि वे जन-समुदाय को अधिकाधिक सुख पहुंचाने के लिए कोई वैधानिक उपाय उठा न रक्खंगी । बढ़ी अपन्तोषपूर्ण बात तो यह थी कि हमारे बहुत से मन्त्री किसान-संस्थाओं और उनके कार्यकर्ताओं की श्रीर शंका और अविश्वास की दृष्टि से देखते थे। एक किसान कार्यकर्ता के शब्दों पर साधारणतः विश्वास नहीं किया जाता था । उसको अजनवी सममा जाता था, और उमका मिलने पाना अवांछनीय था । वह भी खेद की बात थी कि कांग्रेसियों द्वारा की गई अालोचना भी हमारे मन्त्रियों को अच्छी नहीं लगतो थी । मैत्रीपूर्ण अालोचना भी पसन्द नहीं की जाती थी और कभी-कभी अकारण ही विरोध की परिचायक समझी जाती थी। परन्तु जो सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी है, उसे तो पालोचना में चिढ़ने के स्थान पर उसे आमन्त्रित करना चाहिये । उसे अपना कदम तभी नही उठाना चाहिये जब जनता की मांगे उग्र रूप धारण करलें अथवा जब उन मांगो को प्राप्ति के लिए उसकी ओर से विशिष्ट कार्यवाही किये जाने का श्रन्देशा हो । हम तो यह चाहते है कि कांग्रेसी मन्त्रिमण्डल जनता के हृदय अपना स्थान बनायें । अतः हमारे मन्त्रियो को जनता की मांगों की पूर्ति के लिए अधिक तत्पर रहना चाहिये और उसके प्रभाव- अभियोगों को उसके विश्वस्त प्रतिनिधियों के द्वारा धैर्य और सहानुभूति से मुनना चाहिए। कृषक आन्दोलन को बक्र दृष्टि से देखना उचित नहीं ।