पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/७६

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( ४६ ) यदि बताई हुई खरावियाँ ठीक कर दी जॉय और भारी विपमतात्रों को मिटा दिया जाय, तो कृषकों के लिये सीधी कार्ययाही को बचाने के लिए पर्याप्त कानूनी उपाय किये जाने चाहिये। ग्रामों में ऋण का जो प्रश्न है उसका भली भाँति अध्ययन किया जाना चाहिये और यदि उन ऋणों को पूर्णतया समाप्त न किया जा सके तो उनका भार पर्याप्त मात्रा में घटा देना चाहिये । साथ ही कृषकों के लिये जी और सस्ते ऋण की सुविधा जुटाने के ऊपर विशेष ध्यान देना पड़ेगा। कृपि से उत्पन्न पदाथी की विक्री के लिए भी से समुचित कानून बनाये जाने चाहिये जिनसे वीच के ग्रादमियों का मुनाफा उड जाय । सहायक उद्योग धन्धों को बढ़ाने के ऊपर सूक्ष्मता से ध्यान दिया जाना चाहिये और भूमि को अधिक उपजाऊ और उपयोगी बनाने के उपाय किये जाने चाहिये । सरकार को चाहिये कि वह खेतिहरों को सहायना और प्रोत्साहन दे, और एक सक्रिय रूपक- नीति का अनुसरण करे। कृषक-संस्थाओं की आवश्यकता यह प्रश्न बहुधा पूछा जाता है कि जब कॉग्रेस के सदस्यों में अधिकांश कृपक हैं, और जब कांग्रेस ने अपने फैजपुर के कृषक कार्यक्रम में और करॉची के आर्थिक अधिकार विषयक प्रस्ताव में कृषकों की बहुत सी मॉगें सम्मिलित कर ली हैं, तो फिर एक पृथक किसान संस्था की क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर यह है कि कॉग्रेस एक बहुवर्गीय राष्ट्रीय संस्था है और उसमें कृपक अपनी अावाज पूरी तरह नहीं उठा सकते। वे अन्य वर्गों के बीच में बँधे बँधे और खोये खोये से रहते हैं और खुलकर अपनी बात नहीं कह पाते। अतः उनकी हिचक दूर करने और उनमें अात्म-निर्भरता पैदा करने के