पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/९१

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दूसरों के परिश्रम पर मोट होने वाले सब प्रकार के शापकों से उन्हें मुक्त करना होगा। ग्रामों की प्रगति में ये जो वाधाएँ और रोड़े हैं उनको हटाकर माफ करना पड़ेगा। अतः जमींदारी का उन्मूलन अावश्यक है। इस मामले मे क ई हिचक अथवा दु ही बात नहीं होनी चाहिये । ग्राम के इमी अभिशाप का मामन्तमाही प्रातिक्रिया बाद और ग्राम-उन्मदिन के इस गढ़ को मिटाने मे डील करना प्रजातन्त्र के प्रति गद्दारी होगी। यदि जमादार्ग चलता रही और प्राम्य जीवन में अपना विष फैला कर मानव सम्बन्धों को बिगाइनी रही नी ग्रामों में प्रजातन्त्र न ना स्थापित हो सकता है और न चल सकता है । कायं म को दुबारा मनारूढ़ होकर उसका निश्चित रूप स नत्काल अन्त करना चाहिय । हमारा इसम नापी क्या है यह हम पट रूप से समझ ले। हमारा नापी खनिहर और गज्य के बीच में जितने भी मुनाफाखोर है उन सबको समाप्त करने का है । एक प्रकार के जमादागं को ममाम करके दूमगं को उनकी जगह मान लेने में कोई लाभ नहीं । जमींदारी के अन्त का मतलब कंवल उच्चतम जमीदार को समाम करने का न तो हो सकता है और न होना चाहिये। जमींदार के साथ साथ गाँव के बोहरे महाजन को भी जाना पड़ेगा । वह ग्राम में शोपण और उत्पीडन का दूसरा निमिन है। जब नक इस विष को दूर नहीं किया जाता तब तक ग्राम्य जीवन माफ हो कर खुली गाम नहीं ले सकता। उसके ऋणों को चुकाने में लोगों को तुरन्त मुक्त किया जाना चाहिए। उसकी शक्ति को दवा देना चाहिए और उसके लिए अपना प्रणित रोजगार करना असम्भन हो जाना चाहिए । इस कार्गको मावधानी और मतकता सं करना पड़ेगा जिसमे ऐसा न हो कि ग्राम की इस पीड़क और