पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

) रुपये बढ़े हैं वहाँ लगान मे बढ़े हैं ६ करोड ६५ लाख । उत्पादन की कीमत भी बढ़ती गई है । बम कृषक बेचारे को जो भाग मिलता है वही लगातार घट रहा है । उन कारणों से और अन्यों से भी पकों की गरीबी बढ़ रही है और उसके माथ उनके ऊपर कर्ज-भार भी बढ़ रहा है। सन १६२६ में संयुक्तप्रान्तीय लेन-देन अन्वेषण ममिति ने कृषिकर्मियों के ऊपर १२४ करोड़ रुपये के ऋण का अनुमान लगाया था। इन १२४ करोडों में से जमींदारों का ऋण भाग २० करोड था । सन १९२६ के पश्चात् के मन्दी के समय मे कृषकों की कर्जदारी बहुत अधिक बढ़ गई है। चालीम प्रतिशत कृषकों और छोटे जमींदारों के लिए तो यह ऋण भार इतना कठिन रहा है कि आज वे साहूकारों के दासों मे अधिक कुछ नहीं है । उनके सब प्रयत्नों के बावजूद उनके उऋण हो जाने की कोई अाशा नहीं है | सरकार ने स्थिति को सुधारने के लिए जो छोटे मोटे उपाय प्रयुक्त किये हैं उनसे वास्तविक कृषिकर्मियों की अपेक्षा जमीदारों को अधिक महायता मिला है। उन सब उपायों मे उन कृषकों को कोई त्राण नहीं मिल सकता जिनके जमींदार ही साहूकार भी हैं । वे जमींदार मैकडों हथकण्डों से अपना रुपया वसूल कर सकते हैं । दूसरा परिणाम इन उपायों का यह हुअा है कि कृपकों के लिए उधार लेने की सुविधा कम हो गई है। नये प्रतिबन्धों के कारण साहूकार लोग गावों में रुपया उधार देने के लिय तैयार नहीं हैं। और कृषक विना उधार लिए अपना काम कैसे करें । जब तक गज्य स्वयं कृषकों के लिए सस्ते ऋण की सुविधाये न जुटा दे, तब तक ऐसे प्रतिबन्धात्मक उपायों से कृषिकर्मियों का कोई ठोस हित नहीं