१६० समाजवाद : पूंजीवाद दिखाई दिये । बैंक का काम है कि रुपये को सुरनित जमा रक्त और ग्राहक की आवश्यकतानुसार देना-लेता रहे । यह कोई कठिन काम नहीं है। सरकार का ढाक-महकमा उसको करना ही है । हाँ, बैंक के पास जो बहुत सारा रुपया जमा रहता है, टमको उधार देने के कान में अवश्य विशेप योन्यता की आवश्यकता होती है । किन्नु आखिर इस काम को करता कौन है ? बैंक संचालक नहीं, बैंक मैनेजर ही इस कान को करते हैं। उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति उच्च श्रेल के सरकारी कर्मचारियों से कुछ अधिक अच्छी नहीं होनी । अनः क्यों नहीं वह व्यक्तियों की नौकरी करने के बजाय राष्ट्र की नौकरी करना अधिक पसंद करेंगे? किन्तु जिन लोगों ने बैंकों में पूजी लगा रस्ती है, उसका क्या होगा ? जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण होगा तो सरकार पुँजीपतियों पर कर लगा कर पैसा इकट्ठा करंगी और उसके द्वारा लोगों के बैंक शेयरों को खरीद लेनी । इस प्रकार लोगों को बैंकों के राष्ट्रीयकरण से कोई नुकसान न होगा। यही तरीका हम भूनि, रेलों तथा बानों के राष्ट्रीयकरण के लिए भी काम में ला सकते हैं। इस तरीके को हमें भली भांति समझ लेना चाहिए । इस तरीके द्वारा सरकार बिना चनि पूर्ति किये जति पूर्ति कर देती है। यह वास्तव में सम्पत्ति के अपहरण का ही एक प्रकार है, जिसने राष्ट्र को कुछ नी खर्च नहीं करना पड़ना । यदि सरकार कोई ज़नीन का टुकड़ा, क्षति पूर्ति रेल, बैंक या कोयले की वान खरीदनी है, और राजकीय द्वारा करों द्वारा उसका मूल्य चुकाती है तो यह सष्ट है कि वह सम्पत्ति सरकार को मुफ्त में मिल जाती है। करदाताओं को ही उसका नूल्य चुकाना पड़ना है। और यदि वह कर श्राय कर जैसा कर हो, जिससे कि राष्ट्र का अधिकतर भाग पूर्णतः चा अंशतः मुक्त होता है, अथवा वह अतिरिक्त पाय-कर या मृत्यु-कर हो. तो पूंजीपनि वर्गों से ही लिया जाता है, तो सरकार पुँजीपति वर्ग को अपने में से ही किसी एक की सम्पत्ति खरीद कर बिना किली इति पूर्ति के
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