१६२ समाजवाद : पूँजीवाद तो सरकार को निजी रेलों के साथ-साथ सरकारी रेलों का जाल रचना होगा और किराया इतना कम कर देना होगा कि सारा आवागमन सरकारी रेलों के हाथ में चला जाय । इसका नतीजा यह होगा कि निजी रेले वर्वाद हो जायेंगी। किन्तु क्या यह मूर्खतापूर्ण अपव्यय न होगा? प्रथम तो श्रावागमन के उपयोगी और पर्याप्त साधन, जिन पर भारी रकम खर्च हुई है वर्वाद हो जायेंगे । दूसरे सरकार को नये साधन बहे करने के लिये व्यर्थ ही लाखों रुपया खर्च करना होगा। इसकी अपेक्षा तो शेयर होल्डरों (हिस्सेदारों) की क्षतिपूर्ति करके विद्यमान रेलों को अपने हाथ में लेना सरकार के लिये अधिक बुद्धिमानी का काम होगा। प्रतिस्पर्धात्मक उपायों के विरुद्ध एक थापत्ति और है । यदि सरकार निजी उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगे तो उसे निजी उद्योगों को भी प्रतिस्पर्धा करने की स्वतंत्रता देनी होगी । किन्तु यदि राष्ट्रीयकरण का पूरा लाभ उठाना हो तो यह व्यावहारिक न होगा। श्राज ढाक का महकमा हमारे लिये जो काम करता है, वह कोई भी मुनाफाखोर व्यक्ति नहीं कर सकता । यह इसीलिए सम्भव है कि निजी व्यक्तियों को महकमा डाक का कोई काम हथियाने की स्वतंत्रता नहीं है । बैंकों का राष्ट्रीय- करण भी तभी सफल होगा, जब निजी मुनाफाखोरों को प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति न होगी। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि सारी राष्ट्रीय-प्रवृत्तियों पर राष्ट्र का एकाधिकार रहेगा। बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो जाने के बाद तो निजी प्रवृत्तियों के लिए बहुत सुविधायें हो जावेगी। किन्तु लोक सेवा के बडे- बड़े साधनों को सर्वव्यापी बनाना होगा; उन पर जितना खर्च पड़ेगा, उसकी तुलना में एक स्थान पर अधिक और दूसरे स्थान पर कम मूल्य लेना पड़ेगा, अतः व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा से उनकी रक्षा भी करनी पड़ेगी। साथ ही किसी उद्योग या सेवा-साधन का राष्ट्रीयकरण करते समय यह याद रखना चाहिए कि ज़मीन खरीद कर राष्ट्र की सम्पत्ति बना ली जाय । क्योंकि यदि जमीन केवल किराये पर ली जायगी तो राष्ट्रीयकरण का श्रार्थिक लाभ ज़मीन के मालिक को दे देना पड़ेगा।
पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१६९
दिखावट