उत्पत्ति के साधनों का राष्ट्रीयकरण प्रतिस्पर्धा द्वारा निजी उद्योगों को खत्म करने का एक निष्ठुर परिणाम यह होता है कि टन उद्योगों में काम करने वाले लोग धीरे-धीरे रंगाल और नष्ट हो जाते हैं। पूजीवादी तो, दूसरे चाहे मरे या जीयें, अपना ही स्वार्थ देखना है । किन्नु राष्ट्र को तो हानि उठाने वाले और लाभ उठाने वाले दोनों पगों का विचार करना चाहिए । उसे किसी को भी दरिद न बनाना चाहिए। ___हमने राष्ट्रीयकरए फा मिदान्त समझ लिया और यह भी देख लिया कि वह सया युति-संगत है। किन्तु उसको व्यावहारिक रूप देने के लिए यह घोपणा कर देना ही काफी न होगा कि अमुक-अमुक उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है । किसी उद्योग या रानीयकरण मेवा-माधन को वास्तव में राष्ट्र के हाथ में लेने के कैसे होगा? पहले हमको राज-कर्मचारियों के एक नये विभाग की रचना करनी पदेगी। जिस प्रकार अाज सेना, पुलिस, खजाना, दास शादि को सम्हालने के लिए अलग-अलग महकमे कायम हैं, उसी प्रकार का, गानों, रेलों आदि को सम्हालने और घलाने के लिए नये म्हकमे कायम करने पड़ेंगे और उनमें योग्य कर्मचारियों को नियुक्त करना पदेगा । इस प्रकार के महकमे स्थायी और अत्यन्त मंगटिन सरकारों द्वारा ही स्थापित हो सकते हैं। क्रांतियों, तानाशाही सरकारों अथवा उन सम्यागें हारा, अरे कर्मचारी स्थायी नहीं होते, यह कान नहीं हो सकता । क्रांति मे तो इतना हो सकता है कि राष्ट्रीयकरण- विरोधी घर की राजनीतिक सत्ता नष्ट हो जाय । इसके विपरीत यह भी सम्भव है कि क्रांति के बाद जो सरकार स्थापित हो, वह वर्तमान राष्ट्रीय उद्योगों को भी न चला सके और उनको निजी व्यवसायियों के हाथों में सौंप देने के लिए विवश हो जाय । ___ राष्ट्रीयकरण-पक्षपाती सरकार को रुपये-पैसे के बारे में ईमानदार और राष्ट्रीयकरण को सफल बनाने के लिए दृढ़-प्रतिज्ञ होना चाहिए । वह राष्ट्रीयकरण को सामान्य ग्रामदनी बढ़ाने का जरिया भी न बनावे और न कुमवन्ध द्वारा उद्योग को बदनाम और नष्ट-भ्रष्ट करे । कभी-कभी
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