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समाजवाद : पूँजीवाद

१६४ ममाजवाद : पूजीवाद राजकीय कुप्रबन्ध के उदाहरण भी सामने आते हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटिश भारत की निजी कम्पनियों द्वारा संचालित रेलों से रियासती रेलों की तुलना की जा सकती है। रियासती रेलों की दशा सचमुच यदी शोचनीय प्रतीत होती है। इसलिए लोग निजी प्रबन्ध की तारीफ करने सुने जाते है। किन्तु निजी उद्योगों की पया दुर्दशा नहीं होती ? अन्तर सिर्फ यही होता है कि उनकी जिम्मेदारी कुछ व्यत्तियों तक ही सीमित होती है, इसलिए उस और लोगों का बहुत कम ध्यान जाता है। इसके विपरीत राजकीय कुप्रबन्ध थान्दोलनों और क्रान्तियों को जन्म देना है। श्रतः यह जरूरी है निजी उद्योगों की तरह राष्ट्रीय उद्योगों में भी पूर्ण ईमानदारी और सचाई से काम लिया जाय । उदाहरण के लिये यदि महकमा ढाक से मुनाफ़ा होता है तो उसका उपयोग काई-लिफाफों की दर घटाने में किया जाना चाहिए, ताकि मर्व-साधारण को लाभ पहुंचे। किन्तु हम देखते हैं कि ऐसा नहीं होता। इसकी वजह यह है कि देश का भला-बुरा करना लोक-प्रतिनिधियों के हाथ में नहीं है। हमारे बीच में ऐसे लोग भी हैं जो शतिपूर्ति का विरोध करते है। वे कहते हैं कि यदि सम्पत्ति का मालिक चोर ही है तो उसे बुराई में विमुख करने और भलाई की शिक्षा देने के लिए अतिपूर्ति की क्या श्रावश्यक्ता ? यदि करों द्वारा हम समल पूंजीपति वर्ग क्षतिपूर्ति का से कोयले की खान खरीदने का पर्च ले सकते हैं और विरोध इस प्रकार उस सीमातक उनकी सम्पत्ति को राष्ट्रीय सम्पत्ति बना सकते हैं तो उनकी शेप सम्पत्ति को राष्ट्रीय सम्पत्ति बनाने के लिए ही राष्ट्रीय सम्पत्ति पयों नहीं बना सकते ? सम्मिलित पूँजी पर चलने वाली कम्पनियाँ हिस्सेदारी के बदल जाने पर भी उतनी ही अच्छी तरह चलती रहती है। यही हाल रेली, बैंकों श्रादि का भी होगा। सरकार के अधिकार में चले जाने के बाद भी वे पूर्ववत् चलते रहेंगे। तव पूजी पर एकदम इतना कर क्यों न लगा दिया जाय कि पूंजीपतियों को अपने शेयर सर्टिफिकेट श्रादि समस्त साम्पत्तिक अधिकार-पत्र सरकार को देने के लिए विवश हो जाना पड़े ? इस प्रकार