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उत्पत्ति के साधनों का राष्ट्रीयकरण


इसके अलावा सम्भव है बड़े-बड़े उद्योगों और थोक व्यवसायों का राष्ट्रीयकरण करते समय हमें बहुत सारे निजी फुटकर व्यवसायियों को मामूली विभाजन का काम करने के लिए खुला छोड़ देना पडे। अवश्य ही उनको निर्दिष्ट से अधिक कीमतें वसूल नहीं करने सरकारी दी जायेंगी, किन्तु पूँँजीपतियों और भूस्वामियों की सहायता प्राप्त अपेक्षा हम उनको आजीविका के अच्छे साधन सुलभ निजी उद्योग करेंगे और दिवालियेपन के डर से मुक्त कर देंगे।

ग्रामीण लुहारी व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण करने और ग्रामीण लुहार को सार्वजनिक कर्मचारी बनाने के पहले हम रेलों और कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण करेंगे। कलाकारों, कारीगरों और वैज्ञानिकों को छेड़ने से पहले हम घर-घर बिजली की रोशनी पहुँँचाने का प्रबन्ध करेंगे। हम जमीन और बड़े पैमाने पर होने वाली खेती का राष्ट्रीयकरण करेंगे, किन्तु शौक के लिए की जाने वाली फलों की खेती और घरेलू शाक-भाजी के बगीचों पर हाथ न डालेंगे।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण से यह आसान हो जायगा कि निजी उद्योग उसी हदतक चलने दिये जायें जिस हदतक उनको चलने देना सुविधाजनक हो । यदि निजी उद्योगों में अधिक आमदनी होने लगे तो कर लगा कर उसे सामान्य सीमा तक घटाया जा सकता है। किन्तु सम्भावना यही है कि निजी उद्योगों में काम करने वालों को सरकारी नौकरों की अपेक्षा कम आमदनी होगी। कारण, समाजवाद के अधीन श्रमजीवियों की लूट सम्भव न होगी। उस दशा में निजी उद्योग अपने कर्मचारियों की आमदनी राष्ट्रीय सतह के बराबर रखने के लिए सरकार से सहायता की माँग कर सकते हैं। सरकार उन्हें सहायता दे भी सकती है। उदाहरण के लिए किसी दूरवर्ती गांव या घाटी के लिए, जहां इतना आवागमन न होता हो कि आवागमन के साधन का खर्च चल सके, सरकार अथवा न्यूनिसिपैलिटी किसी स्थानीय किसान, दुकानदार या होटल वाले को मोटर-जारी चलाने के खर्च का एक हिस्सा दे सकती है।

आजकल पूँजीपति सरकारें भी निजी उद्योगों को आर्थिक मदद देती