पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७२
समाजवाद:पूंजीवाद

समाजवाद : पूंजीवाद इससे सिद्ध हुआ कि सम्पत्ति से होने वाली आय को निश्चित होकर जब्त किया जा सकता है, बशर्ते कि उसका तत्काल पुनर्विभाजन किया जा सके । राष्ट्रीयकरण के लिए यह आवश्यक है कि मालिकों की क्षति- पूर्ति की जाय और उद्योगों के संचालन की पूर्व तैयारी हो । किन्तु अब उद्देश्य राष्ट्रीयकरण न हो, बल्कि क्रय-शक्ति एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी के लोगों के अर्थात् आमतौर पर धनिकों से गरीबों के हाथ में देकर पंजीवादी प्रणाली के भीतर ही पाय को पुनर्विभाजित करने का इरादा हो तो परिवर्तन की रफ्तार इतनी तेज़ न होनी चाहिए कि जिसे पुँजीवादी च्यापारी अपना न सके अन्यथा उनमें से बहुतों का दिवाला निकल जायगा। गत महायुद्ध में जन-धन का भीपण संहार हुथा। देश के नवयुवकों को उनकी इच्छा-अनिच्छा की परवाह न करते हुए सेना में काम करने के लिये विवश किया गया, किन्तु पूँजीपति सरकार होने के __कारण पूंजीपतियों को रुपया देने के लिए विवश नहीं युद्ध-ऋण किया गया । पूंजीपतियों से जो रुपया लिया गया, वह की हकीकत पाँच सैकडा वार्पिक व्याज पर उधार लिया गया। गत महायुद्ध के पहले इंग्लैण्ड का राष्ट्रीय ऋण ६६ करोड़ था, वह युद्ध के बाद ७ अरव हो गया। इंग्लैण्ड इस ऋण पर पैंतीस करोड़ से अधिक प्रति वर्ष सूद अदा करता है। यह रुपया कहां से श्राता है ? सम्पत्ति के मालिकों से प्रायकर, अतिरिक्त प्रायकर और मृत्युकरों के रूप में ३८ करोड़ वार्पिक वसूल किया जाता है, उसी में से यह चुकाया जाता है । इस प्रकार इंग्लैण्ड की सरकार इंग्लैण्ड के पूंजीपतियों को एक हाथ से ३२ करोड पचास लाख सूद देती है और ३८ करोड २० लाख करों द्वारा दूसरे हाथ से वसूल कर लेती है। पूंजीपतियों को अपनी सम्पत्ति का यह खुला अपहरण क्यों नहीं अखरता? बात यह है कि युद्ध-ऋण सभी पूंजीपतियों ने नहीं दिया, किन्तु कर सभी पूंजीपतियों को देने पड़ते हैं। इसलिए यद्यपि सामूहिक रूप में पूंजीपति घाटे में रहते हैं, किन्तु युद्ध-ऋण देने वाले न देने वाले पूंजीपतियों के बलिदान