पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७५
उत्पत्ति के साधनों का राष्ट्रीयकरण

उत्पत्ति के साधनों का राष्ट्रीयकरए १७५ है, वहीं दूसरी पोर धाम लोगों के सुख में भी वृद्धि की जा सक्ती है। ____किन्नु यदि लोगों को यह मालून होजाय कि सरकार इस प्रकार के करों द्वारा उनको मन्पत्ति को कनी मी जन्त कर सकती है तो उनकी निश्चितता की भावना नष्ट हो जायगी। वे रुपया इकट्ठा करना बन्द कर देंगे और धन्धाधुन्ध खर्च करेंगे। जय प्लेग का जोर होता है तो लोगों को अपने जीवन के बारे में कोई स्थिरता मालूम देती, श्रतः वे एक दिन के मौज-मजे के लिए चरित्र की कोई चिन्ता नहीं करते। इसी प्रकार नियमित वार्षिक श्रायकर के अलावा सम्पत्ति पर लगाये जाने वाले अन्य प्रत्यक्ष कर धार्थिक प्लेग के द्योतक हैं। वे व्यावहारिक भले ही मालूम पहें, किन्नु हैं अविवेकपूर्ण! अग्रतक के विवेचन में हमने जान लिया कि समाजवाद का उद्देश्य समाज में प्राय की समानता कायम करना है। इन उडेश्यों को सान बनाने के लिए यह जरूरी है कि उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हो। हमने देखा कि उद्योगों के राष्ट्रीयकरण का सबसे निरापद अन्तिम तरीका यह है कि सब पूंजीपतियों पर श्रायकर लगाकर निष्कर्ष मालिकों की भरिपूर्ति की जाय । साथ ही हमने यह भी मालून किया कि उद्योगों से पैदा होने वाली प्राय को सरकार किस प्रकार बांट सकती है। अब समाजवाद का सारा कार्यक्रम हमारे सामने है। उसकी व्यावहारिकता के बारे में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि प्रांशिक रूप में वह कई जगह अमल में श्रा रहा है। उसमें पाश्चर्य की बात है तो यही कि उसमें कोई विचित्रता नहीं है । किन्नु एक सवाल पाकी रह जाता है, वह यह कि प्राय के विभाजन का काम सरकार के हाथ में चले जाने के बाद यदि सरकार चाहे नो श्राय का असमान बंटवारा कर सकती है और वर्तमान असमानता को कम करने के बजाय और बढ़ा सकती है। जॉन बनियन ने, जो एक प्रसिद्ध तत्वचिंतक हुए है, कहा है कि स्वर्ग के द्वारों से भी नरक को जाने का रास्ता है और इसलिए स्वर्ग का रास्ता नरक का रास्ता भी है। उस रास्ते जो श्रादमी नरक को जाता है उसका नाम है अज्ञान ।