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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१८६

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क्रान्ति वनाम वैध पद्धति

क्रान्ति बनाम वैध पद्धति १७६ किन्तु वे या तो शीघ्र ही मर जाते हैं या अपनी शक्ति खो देते हैं। राजाओं, सेनापतियों और श्रमजीवी सत्ताधीशों को समान रूप से पता चलता है कि किसी-न-किसी प्रकार की कौंसिलो या पार्लमैस्टों के विना अधिक काल तक वे अपना काम नहीं चला सकते । यह अनुभव से सिद्ध हो चुका है कि प्रतिनिध्यात्मक शासनतंत्र ही सब से अधिक सफल और स्थायी शासनतंत्र होता है, क्योंकि जनता के सहयोग के विना मजबूत-से-मजबूत सरकार भी टूट जाया करती है। पायलैंण्ड में अंग्रेजों की सरकार की यही दशा हुई थी। इस प्रकार हम इस निर्णय पर पहुंच जाते हैं कि क्रान्ति के बाद भी हम को वैध पद्धति से ही समाजवाद की ओर अग्रसर होना पड़ेगा। हमको पुनः धारा-सभाओं और यहुमत का सहारा लेना पड़ेगा। हमको कानून द्वारा प्राय की समानता स्थापित करनी होगी। किन्तु कानून बना देने मान से समस्या हल नहीं हो जायगी । उदाहरण के लिए यदि हम ऐसा कानून बनावें कि देश के हर चालक को काफ़ी दूध-रोटी और रहने के लिए अच्छा मकान मिलना चाहिए तो जबतक हम आवश्यक पाक- शालाधा, गोशालाओं और मकानों की न्यवस्था न करलें, वह कानून मृत कानून ही रहेगा। इसी प्रकार यदि हम ऐसा कानून बनावें कि हर स्वस्थ बालिग भादमी को अपने देश के लिए नित्य थाठ घण्टे काम करना चाहिए तो जबतक हमारे पास सय लोगों को देने के लिए काम न हो, तबतक हम उस कानून पर किस प्रकार श्रमल कर सकेंगे रचनात्मक और उत्पादक योजनाओं को जारी करने के लिए बहुसंरयक लोगों को काम पर लगाना होता है, कार्यालय स्थापित करने होते हैं, शुरूआत के लिए प्रचुर मात्रा में रुपये की व्यवस्था करनी होती है और मार्ग-प्रदर्शन के लिए विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों की सेवायें प्राप्त करनी पड़ती हैं। इन सय साधनों के बिना समाजवाद के लिए जारी की गई राजकीय घोपणाओं का रद्दी कागज के टुकड़ों से अधिक मूल्य नहीं हो सकता। हम सिविल और न्यूनिसिपल सर्विसों के विस्तार, उद्योगों के राष्ट्रीयकरण और निर्दिष्ट वार्षिक योजनाओं द्वारा ही प्राय की समानता के आदर्श