१८० समाजवाद : पूँजीवाद के अधिकाधिक निकट पहुँच सकेंगे। हम इस प्रकार श्रादर्श के इतने नज़दीक पहुँच सकते हैं कि यदि वाद में थोड़ी बहुत असमानता बाकी रह भी जाय तो हम उसकी उपेक्षा कर सकते हैं। इस समय जबकि एक ओर एक बालक लाखों की सम्पत्ति का स्वामी होता है और दूसरी ओर लाखों वालक अपर्याप्त श्राहार के मारे मर रहे हैं, प्राय की समानता के श्रादर्श के लिए श्रावश्यक हो तो लड़ा और मरा जा सकता है। किन्तु देश के सब वालकों का पेट भर जाता हो और उसके बाद किसी बालक के माता- पिता पांच-दस रुपया अधिक प्राप्त करलें तो यह इतनी बड़ी घटना न होगी कि जिसको रोकने के लिए हम कमर कस कर मैदान में उतर पड़े। समस्त सामाजिक सुधारों की अपनी सीमा होती है। उन पर तार्किक सम्पूर्णता या गणित जैसी सूक्ष्मता के साथ अमल नहीं किया जा सकता। अतः यदि हम सव समान रूप से सम्पन्न हो जाते हैं और कोई भी श्रादमी विना ऊंच-नीच के ख़याल के हर कहीं अपनी सन्तान के शादी- व्याह कर सकता है तो हमको राष्ट्रीय बाय के विभाजन में एकाध पैसे के अन्तर पर नहीं झगढ़ना चाहिए। सार यह कि श्राय की समानता मूल-भूत सिद्धान्त रहना चाहिए और उसका अधिकाधिक पालन किया जाना चाहिए। कितना समय लगेगा ? अव प्रश्न यह है कि परिवर्तन में कितना समय लगेगा ? यदि वहुत समय तक परिवर्तन न हो या बहुत धीरे-धीरे हो तो हिसात्मक क्रान्ति हो सकती है जो शेप जन-संख्या को तबाह करके भयानक समानता पैदा कर दे सकती है, किन्तु इस प्रकार पैदा हुई समानता स्थायी न होगी। जहां दृढ़ सरकार हो, कानूनों का विस्तृत संग्रह हो, समाज व्यवस्थित और
पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१८७
दिखावट