पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१८८

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कितना समय लगेगा ?

कितना समय लगेगा? १८१ अन्यन्त सन्य हो, वहीं श्राय की समानता स्थापित की और कायम रक्सी जा सकती है। जिस सरकार में संघात्मक शक्तियों का ज़ोर हो, वह इन सरकार नहीं हो सकती । दृढ़ सरकार वही होती है जिसको बहु-संख्यक लोगों का नैतिक समर्थन प्राप्त हो । नीति-नद सरकार टिक नहीं सनी और न समाजवादी परिवर्तनों पर अमल कर सकती है। वे परिवर्तन विचारपूर्वक थोड़ी-थोड़ी मात्रा में और इतने लोक-प्रिय होने चाहिए कि रद्धता पूर्वक न्यापित हो सकें। यह दयनीय यात है कि परिवर्तन अधिक तेजी के साथ नहीं किया जा सकता ! जब हजरत मूसा ने नित्र में इजराइलवासियों को बन्धन- मुक्त किया तो वे स्वतन्त्रता के इतने अयोन्य हो गये थे कि उनको चालीस वर्ष तक रेगिस्तान में चारों ओर भटकना पड़ा जबतक कि चन्धन में रहे हुए अधिकतर लोग मर न गये। जिन स्थान पर उन लोगों को पहुंचना था, वहाँ चालीस सप्ताह में आसानी से चल कर पहुंचा जा सकता था, किन्नु गुलानी की अवस्था में वे सरचित और भारान में रहे थे, इसलिए खतरों और कठिनाइयों का सामना करने की उनकी शक्ति नष्ट हो गई थी। यदि हम उन लोगों पर, जिनको तैयार नहीं किया गया है, एकसाथ समाजवाद लादने की कोशिश करेंगे तो हनको भी उसी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। वे समाजवाद को तोड़ डालेंगे। कारण, वे न तो उसको समझ सकेंगे और न उसकी संस्थाओं को चला सकेंगे। मार्क ट्वेन ने एक जगह कहा है कि सुधार के लिए समय गुजर चुका, ऐसा कभी नहीं होना । और जो परिवर्तन से भय खाते हैं वे इस आश्वासन पर सन्तोप मान सकते हैं कि परिवर्तन जल्दी होने की अपेक्षा देरी से होने में ज्यादा खतरा है। वह जितना ही धीरे 'भावंगा, उतना ही अधिक कष्टदायी होगा। यह अच्छा ही है कि हम में से जो लोग अपने विकास-क्रम के कारण समाजवाद के सर्वथा अयोन्य हैं, वे हमेशा जीवित नहीं रहेंगे । यदि हमारे लिए इतना ही सम्भव हो जाय कि हम अपने बच्चों को बिगाड़ना बन्द कर सकें तो हमारे राजनैतिक अन्ध-विश्वास और पक्षपात हमारे साथ ही सरन हो जायेंगे