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समाजवाद : पूँजीवाद


और आगामी पीढ़ी जेरिको की दीवारों को धराशायी कर सकेगी।

इसके अलावा आर्थिक स्वार्थ साधुता के खिलाफ़ लोक-मत का नैतिक दबाव अपना काम करेगा ही। समाजवाद के अधीन वह राष्ट्रीय अन्तःकरण का उसी प्रकार अंग हो जायगा जिस प्रकार कि पूँजीवाद के अधीन औरों की अपेक्षा अधिक रुपया कमाना और उसके लिए कोई श्रम न करना सफल जीवन का द्योतक समझा जाता है। आज भी लोग हमेशा वही धन्धा नहीं चुनते हैं जिसमें सब से अधिक रुपया पैदा होने की सम्भावना होती है । वे अपने स्वभाव के अनुकूल काम प्राप्त करने के लिए अत्यधिक आर्थिक लाभकारी धन्धे को भी छोड़ देते हैं। किंतु जब वे अपना काम पसन्द कर लेते हैं तो उसके बदले में अधिक-से-अधिक रुपया पाने की कोशिश करते हैं। इसलिए भविष्य में भी जिस हद तक उनको काम पसन्द करने की स्वतन्त्रता रहेगी, वे उसका उपयोग करेंगे। आजकल बहुत कम लोगों को ऐसी स्वतंत्रता प्राप्त है। किन्तु यह कल्पना की जा सकती है कि समाजवादी भविष्य में अपने पड़ोसियों की अपेक्षा अधिक आर्थिक लाभ पाने का प्रयत्न इतना खराब सममान जायगा कि धोखेबाज़ ताश के खिलाड़ी की भाँति सामाजिक प्रतिष्ठा को खोये बिना कोई उसका श्राश्रय न ले सकेगा।