२० समाजवाद : पूंजीवाद लायक़ काफ़ी कपडा भी नहीं मिलता और जो मिट्टी के मामूली कच्चे घरों और झोंपड़ियों में दिन बिताते हैं, वे उन दुकानदारों और धनवानों से अधिक चरित्रवान हैं जो कुछ श्रम नहीं करते, खूब माते, पहनने और वर्याद करते हैं और ऊंची-ऊंची हवेलियों में रहते हैं। __यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि यदि अाज सम्पत्ति का विभाजन योग्यता के आधार पर नहीं होता है तो क्यों न ऐसी कोशिश करें जिससे भले श्रादमी धनी और बुरे श्रादमी दरिद्र हो जाये ? किन्तु इसमें कई कठिनाइयाँ हैं । प्रथम तो किसी की योग्यता का मूल्य रुपयों में कैसे प्रॉका जा सकता है ? एक गांव है, जिसमें लुहार भी रहता है और पुजारी भी । योग्यता के अनुसार उन दोनों में हमको सम्पत्ति का विभाजन करना है । लुहार को पुजारी जितना दिया जाय या पुजारी से दूना या श्राधा या कितना कम या कितना अधिक ? पुजारी का दावा है कि वह 'हनुमान चालीसा का पाठ करके भूत-प्रेत को भगा सकता है; किन्नु लुहार के पास तो अपने धन के सिवा कुछ नहीं । हो, वह घोदे की नाल अवश्य बना सकता है। यह काम पुजारी सात जन्म में भी नहीं कर सकता । तो सवाल यह है कि 'हनुमान चालीसा' की कितनी चौपाइयों घोड़े की एक नाल के बराबर मानी जाय ! हम यह मालूम कर सकते हैं कि वाजार में सेर भर घी के बदले कितना अन्न मिल सकता है, किन्तु जब हम मानव प्राणियों का मूल्य प्रॉगे तो हमें मानना होगा कि ईश्वर के दरवार में उन सब का समान मूल्य है । उनकी योग्यता के अनुसार सम्पत्ति का बंटवारा करना मनुष्य की माप और निर्णय-शक्ति के वाहर की बात है। सम्पत्ति के विभाजन की तीसरी योजना उन लोगों की है जो 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाले उसी पुराने और सीधे-सादे नियम में विश्वास रखते है; किन्तु इस नियम की घोपणा श्राजकल तीसरी योजना क्वचित ही की जाती है। वे कहते हैं कि हरएक अपनी- अपनी शक्ति के अनुसार ले-ले; किन्तु इससे दुनिया में शान्ति और सुरक्षितता का नामोनिशान भी न रहेगा । यदि हम सब
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