निर्धनता या धनिकता चाहिए। धौर करें भी तो क्या करें ? करने के लिए कुछ हो भी ? काम वे अलवत्ता कर सकते हैं, किन्तु काम को हाथ लगाया नहीं, और वे मामूली आदमी बने नहीं ! इस प्रकार इच्छानुसार वे कर नहीं सकते। इसलिए जो करते हैं उसी को पसन्द करने की चेष्टा करते हैं और कल्पना करते हैं कि हम मौज में हैं। किन्तु असलियत यह है कि चहल-पहल से उनका जी उचटा रहता है, डाक्टर उनको बेवकूफ बनाते रहते हैं और व्यापारी लूटते रहते हैं तथा अपने से अधिक धनियों के हाथों हुए अपमान के बदले उन्हें गरीबों का अपमान कर बुरी तरह सन्तोप मानना पड़ता है। ___ इस योम मे बचने के लिए वहाँ के योग्य और उत्साही धनिक पार्लमएट में, राजनैतिक विभाग में या सेना में दाखिल हो जाते हैं या अपनी जागीर और कारवार को अपने वकीलों, दलालों और प्रतिनिधियों के भरोसे छोडने के बजाय उसका स्वयं प्रबन्ध और विकास करते हैं या भारी परिश्रम और खतरों का सामना कर अज्ञात देशों की खोज करते हैं। फलस्वरूप उनका जीवन उन लोगों के जीवन से बहुत भिन्न नहीं होता, जिन्हें ये सब काम अपनी जीविका के लिए करने होते हैं। इस तरह वे धनी हो जाते हैं और यदि हमारी भाँति उनको भी गरीय वन जाने का लगातार दर न बना रहता तो वे अधिक सम्पत्ति की चिन्ता रखने के फेर में न पड़ते। दूसरों की अपेक्षा अधिक धनी होने में वे लोग ही विशेष सन्तोष अनुभव करते हैं जो बालस्य में पढ़े रहने में श्रानन्द मानते हैं, अपने पड़ोसियों से अपने को वहा मानते हैं और उनसे तदनुसार व्यवहार को श्राशा रखते हैं । किन्नु कोई भी देश इस प्रमाद को सन्तुष्ट नहीं कर सकता। भालस्य और मिथ्यामिमान कोई गुण नहीं है कि जिनको प्रोत्साहन दिया जाय । वे दुगुण है और दूर किए जाने चाहिएं। इसके अलावा थालसी और निकम्मे पड़े-पढे गरीबों पर हुक्म चलाने रहने की इच्छा उचित भी हो तो भी यदि गरीब न हो तो वह कैसे तृप्त की जा सकती है ? हम न ग़रीब थादमी चाहते हैं और न धनी श्रादमी, हम खाली श्रादमी चाहते हैं जिनके पास काफी सम्पत्ति
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