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समाजवाद:पूंँजीवाद


तृप्णा में उन लाखों हानियों को भूल जाते हैं जो लाखों-करोड़ों अभागों को उठानी होती हैं।

कुछ गरीब लोग ऐसे भी होते हैं जो आशा करते हैं कि उनके बच्चे शिक्षा पाकर किन्हीं ऊंचे ओहदों पर नौकर हो जायंगे और दरिद्रता की कीचड़ से निकल सकेंगे। जैसे-तैसे उन्हें पढ़ाते हैं या उनके कुछ बच्चे छात्रवृत्तियां प्राप्त कर लेते हैं और पढ़-लिख कर बड़े हो जाते हैं। किन्तु ऐसे उदाहरण अपवाद ही होते हैं। वे सामान्य लोगों को आशा का कोई सन्देश नहीं देते और दुनिया में सामान्य लोग ही ज़्यादा रहते है। साधारण धनी का बच्चा और साधारण गरीव का बच्चा दोनों समान स्वस्थ मस्तिष्क ले कर जन्म ले सकते हैं, किन्तु युवा होते-होते एक का मस्तिष्क शिक्षा मिलने से विकसित हो चुकता है, वह उससे योग्यता का कोई भी काम कर सकता है। किन्तु दूसरे को कोई ऐसी नौकरी भी नहीं मिल सकती कि वह सुसंस्कृत मनुष्यों के सम्पर्क में भी रह सके। इस तरह देश को बहुत सी मस्तिष्क-शक्ति नष्ट होती है । यह ठीक है कि अच्छे मस्तिष्क सभी को नहीं मिलते, किन्तु वे थोड़े से धनिकों में से जितने बच्चों को मिलते हैं उनसे कई गुने अधिक बच्चों को गरीबों में से मिलते हैं, क्योंकि वे धनिकों की अपेक्षा कई गुने हैं, किन्तु प्राय की असमानता के कारण उनका विकास नहीं हो पाता । परिणाम यह होता है कि योग्यता के सारे कामों में उनकी जगह विना योग्य-अयोग्य का ख़याल किए धनिकों को ही भर दिया जाता है जो ग़रीवों पर हुकुम चलाने की आदत सीखे होते हैं ।

: ६ :

समान आय की आपत्तियां

राष्ट्रीय आय को सब लोगों में समान रूप से विभाजित करना सम्भव है, इसमें शक करने की गुंजाइश नहीं है। कारण, दीर्घकालीन