पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/६७

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समाजवाद:पूंजीवाद

समाजवाद : पूंजीवाद होती है उससे अधिक कठिनाई उन कामों में अनुभव न होगी । किन्तु जवतक ऐसा नहीं होता तबतक सब लोग वे ही काम करना पसन्द करेंगे जो अधिक सुखकर होंगे, वशर्ते कि उनकी कोई ऐसी खास रुचि न हो जैसी कि किसी खास वलवान श्रादमी को रोज़ ३० मील पैदल ढाक ले जाने की होती है, या एक दयावान लडकी की मैले-कुचले सड़ते हुए रोगी की सेवा करने की होती है। किन्तु एक उपाय ऐसा मौजूद है कि जिससे विभिन्न व्यवसायों के प्रति समान आकर्षण पैदा किया जा सकता है। वह है अवकाश या स्वतंत्रता । मज़दूर जब काम के दस घंटों के बजाय पाठ घन्टों के लिए आन्दोलन करते हैं तो वास्तव में वे १४ घन्टे के बजाय १६ घन्टे का अवकाश चाहते हैं ताकि वे उसमें अपनी रुचि और मनोरंजन के काम तथा पूरा धाराम कर सकें । यही कारण है कि हम लोगों को श्राराम की नौकरी के बजाय, जिस मे उनको कभी स्वतंत्रता नहीं मिलती,ऐसी कठिन और कड़ी नौकरी पसन्द करते देखते हैं, जिसमें उन्हें अवकाश का समय थोड़ा अधिक मिल जाता है । कारखाने वाले शहरों में (यदि बेकारी न हो तो) बहुधा कुशल और समझदार घरेलू नौकर या तो मिलते ही नहीं या मुश्किल से मिलते हैं । यद्यपि कारखाने का काम कड़ा होता है और घरेलू नौकर का पासान, किन्तु कारखाने में एक निश्चित समय के बाद वे स्वतंत्र होते हैं। पर घरेलू नौकर का अपना कोई समय नहीं होता । वह हमेशा घन्टी की प्रतीक्षा में द्वार पर बैठा रहता है ।तो रुचिकर और सरलतर काम करने वालों की अपेक्षा जिन लोगों को कम रुचिकर और कम सरल काम करना पड़ता है उनकी क्षतिपूर्ति उन्हें अधिक अवकाश देकर जल्दी पैन्शन-भोगी वर्ग में दाखिल करके, अधिक छुट्टियां देकर की जा सकती है। ऐसा होने पर कम रुचिकर कामों के लिए कम अवकाश देने वाले अधिक रुचिकर कामों की भांति लोग मिलने लगेंगे। मनोरंजक काम-कुछ काम तो परिस्थितियों के कारण मनोरंजक होते हैं जैसे बहुत तेजी से न चलने वाले कारखानों का काम जो रसोई घर में बैठे-बैठे रोटियां पकाते रहने के काम से अधिक सामाजिक होता