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समाजवाद : पूँजीवाद

समाजवाद : पूंजीवाद स्थानों में धनियों पर प्रवेप-शुल्क लगा दिया जाय जिससे उनको कायम रक्खा जा सके। सार्वजनिक कामों पर होने वाला व्यय यद्यपि अनिवार्य व्यय है जिसे सबको समान रूप से देना पड़ता है; किन्तु जबतक श्राय समान न हो, सब लोग उस व्यय का भार नहीं उठा सकते । इसका इलाज यह नहीं है कि ये स्थान एक्ख ही न जाय, यदि हम ऐसा करें तो हमारा जीवित रहना कठिन हो जायगा । इसका ठीक इलाज तो प्राय का समी-करण ही है। किन्तु जबतक वह नहीं हो जाता तबतक हमें म्यूनिसिपल-कर का अपना हिस्सा खुशी-खुशी देना चाहिए। इंग्लैण्ड में जहां बेकारों को वेकारी का भत्ता देने की प्रथा है, करदाता के पैसे से धनी दूसरे प्रकारों से भी लाभ उठाते हैं। धनी नौकर रखते हैं तो चे कुछ को तो नियमित काम देते हैं और कुछ को कभी-कभी । फुटकर काम करने वाले कुछ घन्टे के लिए या एक दिन के लिए रखे जाते हैं। उसके वाढ मजूरी दे कर अलग किए जाते हैं । उन्हें जबतक उतना ही छोटा दूसर. काम न मिल जाय तबतक वे बाजारों में इधर-से-उधर फिरते रहते है । यदि वे बीमार होते हैं तो भी उनकी खबर लेने वाला कोई नहीं होता । ऐसे काम करने वाले, जिनके श्रम का पूरा फायदा धनियों ने उठाया, बुढ़ापे में जब काम करने योग्य नहीं रहते तो म्यूनिसिपल करों में से मिलने वाली बेकार वृत्ति पर निर्वाह करते हैं । यदि करदाता इन लोगों के निर्वाह का भार अपने ऊपर न लें तो धनियों को उन्हें उनके श्रम का या तो अधिक पारिश्रमिक देना चाहिए या बुढ़ापे में पंन्शन, किन्तु धनी ऐसा नहीं करते और अपने घरलू खर्च का एक भाग करदाताओं से दिलाते हैं। ऐसा ही वन्दरगाहों की कम्पनियां करती हैं। वे जहाजों में माल उतारने और उनमें लादने का काम करने वाले मजदूरों को बहुत कम मजदूरी देती हैं, किन्तु उनसे काम बहुत जोखिम का और कड़ा लेती हैं। वे उन्हें घन्टों के हिसाब से काम देती हैं। इन मज़दूरों की भी हालत ऐसी ही होती है। उनमें से कितने ही म्युनिसिपल दरिद्रशालाओं में