पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१०

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समालोचना-समुच्चय

बर्ताव किया जायगा। वे थीं अबला और अबलावों का विशेष बल होता है रोना और आक्रोश करना, सिसकना और सिर धुनना। उसी का अवलम्ब उन्होंने किया। वे लगीं रोने। बड़े बडे आँसुओं के साथ, लगा उनकी आँखों का काजल बहने। मुँँह उनके सूख गये। अत्युष्ण श्वासोच्छ्वासों की मार से उनके बिम्बाधर कुम्हला गये। बड़ी देर तक वे अपने पैर के अँगूठों से ज़मीन कुरेदती हुई ठगी सी खड़ी रहीं। हाय, बड़ा धोखा हुआ। यह निष्ठुरता! हमारे अनन्य और निर्व्याज प्रेस का यह बदला! हमने जिसे अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया उसका यह निष्कृप व्यवहार! इसी तरह की बातें उन्होंने मन ही मन कीं। भगवान् कृष्ण स्वयं ही जान सकें होंगे कि उनके उस धर्म्ममूलक ढकोसले की दुहाई ने गोपियों के कमल-कोमल हृदयों पर कितना निष्ठुर व्रजपात किया होगा। खै़र, अपने होश किसी तरह थोड़ा बहुत सँभाल कर उनमें से कुछ प्रगल्भा गोपियों ने कृष्ण के सदुपदेश का इस प्रकार सत्कार किया। वे बोलीं―

सरकार, आप तो बहुत बड़े पण्डित-प्रवर निकले। पण्डित ही नहीं, धर्मशास्त्री भी आप बन बैठे हैं। हमें आपके इन गुणों की अब तक ख़बर ही न थी। आपकी इन परमपावन कल्पनाओं का ज्ञान तो हमें आज ही हुआ। प्रार्थना यह है कि आप आदि-पुरुष भगवान् को भी जानते हैं या नहीं। मोक्ष की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु जन, अपना घर-द्वार, स्त्री-पुत्र, धन-वैभव, सभी सांसारिक पदार्थों का परित्याग करके जब उनकी शरण जाते हैं तब, आप ही की तरह, क्या वे भी उन मुमुक्षुओं को वैसा ही शुष्क उपदेश देते हैं जैसा कि आपनें हम लोगों को दिया? क्या कभी कोई पुरुष भगवान् के दरबार या द्वार से उसी तरह दुरदुराया गया है जिस तरह कि आप हमें दुरदुरा रहे हैं? आपको सर्वेश और सर्वात्मा