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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१००

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समालोचना-समुच्चय

इससे वैदिक पण्डितों को बेहद लाभ हो सकता है। वे लोग अब तक महीनों मिहनत करके यह जानने के लिए वेदों के पृष्ठ उलटा करते थे कि अमुक शब्द अमुक वेद में कितनी दफ़े आया है और किस किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उनकी वह मिहनत अब सर्वथा बच गई समझिए। हाँ, एक बात लिखना हम भूल गये। वह यह कि प्रसिद्ध संस्कृत-विद्वान् मैक्समूलर की बनाई वैदिक शब्दों की एक सूची बहुत पहले से विद्यमान है। उसे इस वैदिक पद-सूची के निर्माताओं ने शायद नहीं देखा। क्योंकि देखते तो उसका उल्लेख वे अपनी भूमिका में अवश्य करते। इतनी उपयोगी और इतने महत्व की इस सम्पूर्ण पुस्तक का मूल्य सिर्फ १० रुपये रक्खा गया है। पुस्तक बम्बई के गिरगांव-आर्य समाज से मिल सकती है। आशा है, विद्याव्यसनी और अर्थ-समर्थ पाठक इसे मँगाकर ज़रूर लाभ उठायेंगे और एतद्द्वारा इस अनुपम वैदिक कोष के भावी खण्डों के प्रकाशन में सहायक होंगे।

स्वामी विश्वेश्वरानन्द और नित्यानन्द जी से हमारा एक उपालम्भ है। उन्होंने इस अनुक्रमणिका का जो विज्ञापन अँगरेज़ी और हिन्दी में छपाकर प्रकाशित किया है उसके हिन्दीवाले भाग में आप लिखते हैं―

“किन्तु किस किस शब्द का क्या क्या अर्थ है और सायण, महीधर, उद्भट और श्रीस्वामी दयानन्द जी आदि भाष्यकारों ने इन शब्दों के क्या क्या अर्थ किये हैं यह पता भी इन शब्दों के भाष्य द्वारा उसी समय लग जाता है"।

इसमें उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के नाम के पहले तो “श्री" और “स्वामी" ये दो आदरार्थक शब्द दिये हैं। पर अन्य