विचार-विमर्श
एक सज्जन ने अँगरेज़ी को एक पुस्तक हमारे देखने के लिए भेजने की कृपा की है। पुस्तक का नाम है―The Indian Literary Year Book and Authors, who is who, इस पुस्तक का सम्बन्ध १९१५ ईसवी से है। भारतीय लेखकों, समाचारपत्रों, सामयिक पुस्तकों, प्रेसों और साहित्य-सम्बन्धिनी सभाओं आदि का उल्लेख इसमें है। अन्त में प्रेस, समाचारपत्र और कापी-राइट से सम्बन्ध रखनेवाले ऐक्टों और नियमों आदि की नक़लें भी हैं। यह वार्षिक पुस्तक है। पर हमें इसे देखने का सौभाग्य आज ही प्राप्त हुआ। इस वर्ष के ९ महीने बीत गये। मालूम नहीं १९१६ की “Year Book" निकली है या नहीं।
इस पुस्तक का सम्पादन प्रोफ़ेसर नलिनविहारी मित्र, एम० ए०, नाम के किसी महाशय ने किया है और प्रकाशन इलाहाबाद के पाणिनि-आफिस ने। पुस्तक अँगरेज़ी में है। आकार मध्यवर्ती है। पृष्ठ-संख्या २३+१९८ है। पर मूल्य दो रुपये हैं।
इसके आरम्भ में सम्पादक महाशय का लिखा हुआ एक उपक्रम है। उसके एक दो नहीं, सात सफ़हों में बँगला भाषा की महत्ता और उन्नति आद का वर्णन है। उसमें एक जगह लिखा है―“It is an admitted fact that the rank of a classical language can now be justly claimed for Bengali." यह सब ठीक। बँगला ने बड़ी उन्नति की है। अनेक विषयों की अच्छी अच्छी पुस्तकें उसमें हैं। उसके एक लेखक को “नोबल प्राइज़" भी मिला है। तथापि बँगला की जो।