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समालोचना-समुच्चय


ही उन अक्षरों का रूप भी बताया गया था और ऋषि लोग वैदिक काल में भी लिखना जानते थे।"

यही पुस्तक-प्रणेता महाशय की पुस्तक का सार अंश है। इन्हीं बातों का विस्तार आपने पुस्तक में किया है। विषय-प्रतिपादन में आपने तर्क और युक्ति से अच्छा काम लिया है। अपने कथन की पुष्टि में आपने प्रमाण भी दिये हैं। आपकी युक्तियाँ सबल हों या निर्बल और आपके प्रमाण वर्ण्य विषय के यथेष्ट परिपोषक हों या न हो, यह बात ही और है। कहने का मतलब केवल इतना ही है कि आपने जो कुछ लिखा है सो समझ बूझ कर, विचारपूर्वक, लिखा है और प्रतिपादन की इतिश्री आपने अपने ही कथन पर नहीं कर दी। आपके इस गुण और इस लेखन-शैली का हम हृदय से अभिनन्दन करते हैं।

पुस्तक का प्रधान विषय यद्यपि अक्षर-विज्ञान है तथापि पुस्तक का अधिकांश मनुष्य की आदिम सृष्टि और भाषाविज्ञान के वर्णन ही में ख़र्च हो गया है। इससे मूलविषय का सङ्कोच हो गया है। वही विषय प्रधान था। अतएव वह कुछ और विस्तार के साथ वर्णन किया जाता तो अच्छा होता।

बेचारे डारविन के कीर्ति-चन्द्र पर खग्रास ग्रहण लगने के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। प्रोफ़ेसर बेटसन, प्रोफ़ेसर मेंडल और मैडम हेनरी आदि के युक्तिसमूह राहु बन कर उसका ग्रास करने के इरादे में थे ही कि अक्षर-विज्ञान के लेखक के युक्तिवाद भी उनकी सहायता के लिए तैयार होकर निकल पड़े। दुःख इतना ही है कि आपकी पुस्तक अँगरेज़ी में नहीं। इस कारण डारविन के प्रतिपक्षी शायद उससे फायदा न उठा सकें।