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माथुर जी का रामायण

का बहुत ही कम ज्ञान रखते हैं, अतएव उनको इस विषय में कुछ कहने का विशेष अधिकार न था। अनधिकारी पुरुष की बातों का सविस्तर उत्तर देने की आवश्यकता भी नहीं। अतएव हम उनकी दो ही एक बातों की आलोचना करेंगे।

माथुर महाशय कहते हैं---

Fiction as a branch of literature was unknown to the ancient Hindus.

अर्थात् प्राचीन हिन्दू काल्पनिक साहित्य ( उपन्यास आदि ) को जानते ही न थे।

मिस्टर दत्त लिखते हैं---

India was not better known to the ancient nations for her science and poetry than as the birth-place of the fables and fiction.

इसका भावार्थ यह है कि प्राचीन जातियाँ हिन्दुस्तान को काल्पनिक कथाओं और काल्पनिक साहित्य की जन्मभूमि समझती थीं। काल्पनिक साहित्य की अपेक्षा काव्य और विज्ञान के सम्बन्ध में वे इस देश से अधिक परिचित न थीं।

माथुर महाशय को जानना चाहिए कि १२०० वर्ष की पुरानी कादम्बरी, वासवदत्ता और दशकुमारचरित आदि पुस्तकें काल्पनिक साहित्य ही में गिनी जाती हैं। कथासरित्सागर की प्राचीनता का तो ठिकाना ही नहीं; परन्तु उसे वे शायद फेबल्स ( Fables ) मिथ्या कथा समझ; फिकसन ( Fiction ) उपन्यास न मानें। इसलिए हमने उसे उपन्यासों में नहीं गिना।

तुलसीदास की रामायण को आप "Universally admired but little read" कहते हैं। आपके मत में रामायण को सब