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समालोचना-समुच्चय

और आयुर्वेद की विशेषता बताई, अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ आयुर्वेद की तुलना की। ऋग्वेद में आयुर्वेद के मूलतत्त्वों और प्रधान सिद्धान्तों का दिग्दर्शन कराया, आयुर्वेद के विरोधियों की आलोचना की और वर्तमान वैद्यों के कुछ दोष भी दिखाये एवं वेदों में आयुर्वेद के महत्त्व और प्रतिष्ठा-प्रतिपादक प्रमाणों का उल्लेख भी किया"।

लीजिए, सब कुछ तो कर दिया। अब रही क्या गया? वेदों की सत्यता सिद्ध करने का मार्ग तक तो दिखा दिया गया। अब यदि कोई उस मार्ग से न जाय, कोई और ही मार्ग ढूँढ़ निकाले तो, बतानेवाले का क्या दोष?

[ जून १९२६ ]