खोज-विषयक रिपोर्ट
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हिन्दी-पुस्तकों की खोज का काम बड़े महत्व का है। खोज की बड़ी ज़रूरत भी है। हिन्दी-साहित्य को बहुत लोग तुच्छ दृष्टि से देखते हैं। वे कहते हैं कि उसमें है ही क्या। उनकी इस भ्रमपूर्ण भावना को यह खोज दूर कर सकती है। हिन्दी के जितने ही अधिक ग्रन्थों का पता चलेगा उतना ही अधिक महत्व उसके साहित्य का बढ़ेगा। काशी की नागरी-प्रचारिणी सभा इस काम को कई साल से कर रही है। पर जो लोग यह काम करते हैं उन्हें और भी कितने ही काम करने पड़ते हैं। इस कारण वे इस काम में जितना चाहिए उतना समय नहीं ख़र्च कर सकते। तथापि जो कुछ उन्होंने इस विषय में किया है और अब भी कर रहे हैं उसके लिए हम लोगों को उनका अवश्य ही कृतज्ञ होना चाहिए। इस काम में एक और भी बाधा है। वह रुपये की कमी है। गवर्नमेंट सहायता अवश्य देती है, पर वह पर्याप्त नहीं। यदि वह कृपा करके अपनी सहायता की मात्रा कुछ अधिक कर दे तो यह उपयोगी काम और भी अच्छी तरह हो सके। कुछ दिन हुए, दुःख के साथ सुना था कि गवर्नमेंट इस थोड़ी सी सहायता को भी बन्द करना चाहती है। आशा है, सर जेम्स म्यस्टन ऐसा न करेंगे। छिपी पड़ी हुई पुस्तकों के प्रचार से राजा और प्रजा दोनों को लाभ है। अतएव सहायता बन्द कर देना बड़ी भारी भूल होगी।
गवर्नमेंट प्रेस, इलाहाबाद, ने तीन साल की खोज की रिपोर्ट की एक कापी कृपा करके हमें भेजी है। यह १९०६, ७, ८ ईसवी की रिपोर्ट है। २६ अगस्त १९०९ को लिखी जाकर यह तैयार