हुई थी। छपी १९१२ में। प्रकाशित हुई है अब १९१३ में। यह दीर्घसूत्रता अच्छी नहीं। यह रिपोर्ट प्रयाग के इंडियन प्रेस में छपी है। इसमें कोई ४०० पृष्ठ हैं। पर असल रिपोर्ट २० ही सफे की है। बुँदेलखण्ड के पोलिटिकल एजन्द के अधीन जितनी रियासतें हैं उन्हीं में की गई खोज की यह रिपोर्ट है। इसके पहले, १९०५ की जो रिपोर्ट निकल चुकी है उसका भी सम्बन्ध इसी बुँदेलखण्ड की खोज से है। वह और यह, ये दोनों रिपोर्ट, बुदेलखण्ड ही में विद्यमान पुस्तकों की हैं। इन्हीं में बुँदेलखण्ड की खोज का काम समाप्त कर दिया गया है। बुँदेलखण्ड में रियासतों के सिवा अन्यत्र खोज करने, और खोज को कुछ अधिक समय तक जारी रखने, का सुभीता शायद नहीं। इसी से चार ही वर्षों में वहाँ की खोज ख़तम कर दी गई। पर छत्रपुर, चरखारी, दतिया और समथर आदि रियासतों के सिवा इस खण्ड में अन्यत्र भी हिन्दी की हज़ारों पुस्तकें हैं। कोंच, जैतपुर, कुलपहाड़, जाखलौन, तालबेहट आदि ही को लीजिए। ढूँढ़ने से यहाँ हज़ारों पुस्तकों का पता चल सकता है। जाखलौन में हमने अपनी आँखों से अनेक पुस्तकें देखी हैं। बुदेलखण्ड और बैसवारा हिन्दी-कवियों का घर है। वहाँ अनन्त ग्रन्थ-रत्न छिपे पड़े हैं। खोजनेवाला चाहिए। पर यह काम श्रम-साध्य और धन-सापेक्ष है। अतएव जो कुछ खोज हो गई वही बहुत है। पर इससे यह न समझना चाहिए कि इस प्रान्त में खोज का काम समाप्त हो गया; खोज के लिए अब और जगह नहीं।
जिन तीन वर्षों की खोज का उल्लेख इस रिपोर्ट में है उनमें सब मिला कर १०८३ पुस्तकों का पता लगा और उनका संक्षिप्त विवरण आदि भी लिखा गया। इनमें ८७३ पुस्तकों ही के कर्ताओं का पता चला; शेष २१० पुस्तकों के लेखकों का