नाम-धाम नहीं मालूम हो सका। ये ८७३ पुस्तके ४४७ कवियों की रची हुई हैं। इन कवियों में से १२० तो बुँदेलखण्ड ही के कवि हैं। १३१ और प्रान्तों के हैं, और ८५ ऐसे हैं जिनके वसति-स्थान का पता नहीं चला। बचे १०१, सो वे कवि अभी कल के हैं। अतएव पुरानों में उनकी गिनती नहीं हो सकती। खोजे हुए ग्रन्थों में एक बारहवीं, एक तेरहवीं और बाईस पन्द्रहवीं सदी के हैं। शेष सब सोलहवीं से लेकर उन्नीसवीं सदी के। रिपोर्ट में कई उपयोगी नक़्शे हैं। बुँदेलखण्ड के कवि, अन्यत्र के कवि, अज्ञात-निवास कवि, अर्वाचीन कवि---इन सब के ग्रन्थादि का विवरण अलग अलग दिया गया है। इससे रिपोर्ट की उपयोगिता बढ़ गई है और हर कक्षा के कवियों और उनके रचे हुए ग्रन्थों का विवरण जानने में बहुत सुभीता होता है। इसके सिवा रिपोर्ट के अन्त में कवियों और ग्रन्थों की नामावली भी रिपोर्ट के सम्पादक ने लगा दी है। यह और भी अच्छी बात हुई है।
इस रिपोर्ट में जिन पुस्तकों के नाम आदि का निर्देश है उनमें से अधिकांश कुछ भी महत्व नहीं रखतीं। परन्तु हिन्दी-साहित्य में ऐसी ही पुस्तकों का बाहुल्य है। अतएव खोज करनेवालों का इसमें कुछ भी दोष नहीं। परन्तु साथ ही इसके इसमें ऐसी भी कुछ पुस्तकों का उल्लेख है जो बहुत कुछ महत्व रखती हैं। इनमें से कई एक राजनीति, धनुर्विद्या, शालहोत्र, वैद्यक आदि पर हैं।
रिपोर्ट के सम्पादक ने रिपोर्ट में बुँदेलखण्ड के कवियों और उनको आश्रय देनेवाले राजों पर जो कुछ लिखा है वह विचारपूर्वक लिखा है। उससे उस समय के बुँदेलखण्डी राजों और राज-पुरुषों के विद्याव्यासङ्ग और कविता-प्रेम का अच्छा परिचय मिलता है। स०
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