पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
समालोचना-समुच्चय

इस रिपोर्ट के दूसरे पृष्ठ पर लिखा है---"प्रसिद्ध कवि पद्माकर की दो और पुस्तकों की प्राप्ति हुई है---एक तो जमुनालहरी, दूसरी जगतसिंह विरुदावली"। परन्तु हमारा निवेदन है कि पद्माकर की जमुनालहरी की प्राप्ति हुए और उसे छपे हुए बहुत समय हुआ। हमने उसे लड़कपन में पढ़ा था।

जैसा ऊपर कहा गया है, इस रिपोर्ट में तीन प्रकार के कवियों के नाम आदि का निर्देश है---अर्थात् बुँदेलखण्ड के कवियों का, अन्यत्र के कवियों का, और ऐसों का जिनके रहने का स्थान ज्ञात नहीं। पर इनमें से केवल बुँदेलखण्ड के कवियों के ग्रथों ही के आद्यन्त के नमूने दिये गये हैं। अन्य दोनों प्रकार के कवियों के ग्रन्थों के केवल नाम, पृष्ठसंख्या, श्लोकसंख्या, पृष्ठों की लम्बाई-चौड़ाई इत्यादि ही देकर सन्तोष किया गया है। यह शायद इसलिए किया गया है जिसमें रिपोर्ट बहुत बड़ी न हो जाय। बात यह हुई है कि बुँदेलखण्ड के कवियों ही के ग्रन्थों को प्रधानता दी गई है। यह अनुचित जान पड़ता है। जो ग्रन्थ बहुत ही कम महत्व के हैं उनके नमूने यदि न भी दिये जाँय तो कुछ हानि नहीं; चाहे वे जहाँ के कवियों के ग्रन्थ हों। पर जो ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं---साहित्य की दृष्टि से जिनका मूल्य विशेष है--उनके नमूने ज़रूर देना चाहिए था। अतएव जिन ग्रन्थों के नाम इस रिपोर्ट में हैं उनमें से ऐसे वैसे ग्रन्थों का यदि केवल नामादि-निर्देश कर दिया जाता और महत्वपूर्ण सभी ग्रन्थों के नमूने दे दिये जाते तो विशेष लाभ की बात होती।

इन रिपोर्टों में एक बात और भी होनी चाहिए। प्राप्त हुए अच्छे अच्छे ग्रन्थों का परिचय कुछ अधिक विस्तार से देना चाहिए। लिखना चाहिए कि वे किस दरजे के अन्थ हैं, उनमें क्या क्या गुण हैं, उनके प्रकाशन से कुछ लाभ की सम्भावना है या