हीन किया जाना एक महत्वपूर्ण घटना है। परन्तु लेखकों ने इस विषय में अपनी कोई राय नहीं दी। उन्हें इस पर यह ज़रूर लिखना था कि वे इसे उचित समझते हैं या अनुचित। बालिवध पर भी उन्होंने अपनी स्वतन्त्र सम्मति नहीं प्रकाशित की। उन्होंने जो यह लिखा कि शत्रु को छल से मारने में तुलसीदास ने कोई दोष नहीं समझा, सो तो तुलसीदास की बात हुई। यदि लेखक महोदय भी यह लिख देते कि वे इस घटना को कैसी समझते हैं, तो उनकी भी राय मालूम हो जाती।
इससे यह न समझना चाहिए कि लेखकों ने इस पुस्तक में तुलसीदास के विशेष करके दोष ही अधिक बतलाये हैं। नहीं, उन्होंने गोसाँई जी के अनेक गुणों के भी उल्लेख यथामति किये हैं। परन्तु, यहाँ पर, उनके निर्देश की विशेष आवश्यकता नहीं; क्योंकि पुराने कवियों के गुणों का उल्लेख करना कोई नई बात नहीं और न वैसा करने के लिए मानसिक बल ही की अपेक्षा है।
पुस्तक की उपादेयता
लेखकों ने तुलसीदास के ग्रन्थों का बड़े परिश्रम से पाठ करके उनकी कविता की, उसमें वर्णन की गई घटनाओं की, और उनमें उल्लिखित पात्रों के स्वभाव आदि की आलोचना की है। अन्य कवियों के ग्रन्थों आदि की समालोचनायें यद्यपि उन्होंने उतनी बारीकी से नहीं की, तथापि उनके अवलोकन से भी साधारण पाठकों को उन कवियों के सम्बन्ध की अनेक बातें मालूम हो सकती हैं। उनके जीवनचरित, उनके ग्रन्थों के नाम और विषय, उनके निर्माण का काल, और, लेखकों के विचारानुसार, उनकी कविताओं के गुण-दोष आदि जानने का हिन्दी-नवरत्न अच्छा साधन है।