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पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२३१

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हिन्दी-नवरत्न

हिन्दी-नवरत्न पुस्तक के २०७ वें पृष्ठ पर लेखक महोदय देव के विषय में लिखते हैं---"ऐसे उत्तम छन्द किसी अन्य कविता में स्वप्न में भी नहीं देखे जाते। इनके उत्तम छन्दों के बराबर किसी विद्या में कोई छन्द पाना कठिन है"। इसी उक्ति का पिष्टपेषण २११ वें पृष्ठ पर इस प्रकार आप लोग करते हैं---"जितने उत्तमोत्तम छन्द देवजी की कविता में हैं उतने किसी की कविता में नहीं पाये जाते। यदि छन्दों की उत्तमता के हिसाब से विचार करें तो देवजी ही सर्वोत्तम कवि ठहरेंगे"। इसी कथन को आगे चल कर और भी कई दफे आपने दुहराया तिहराया है। आप क्षमा करें, हमें भी स्वप्न में भी कभी यह ख़याल न था कि आप ऐसी ऐसी बेतुकी बातें लिखेंगे। आपके इस 'उत्तम' शब्द ने आपकी इस पुस्तक के गौरव को बेतरह घटा दिया है। किसी 'विद्या' का क्या अर्थ? 'विद्या' भी क्या कोई भाषा है? और 'छन्द' से आपका क्या मतलब? दोहा, चौपाई, घनाक्षरी, सवैया आदि से यदि आपका मतलब है तो इन छन्दों में और लोगों ने भी कविता की है। देव और कौन से लोकोत्तर या उत्तमतर छन्द निकाल लाये? यदि छन्द से मतलब आपका पद्य से है तो जिन पद्यों पर आप मुग्ध हों उनके गुणों---अर्थ, रस, भाव, अलङ्कार, सरसता, रोचकता, लालित्य, लक्षणा, व्यञ्जना आदि---के विषय में जो कुछ कहना था कहते। छन्द की क्या तारीफ़! यदि देव के जैसे छन्द किसी भाषा के किसी कवि की कविता में नहीं तो फिर तुलसीदास की कविता की जो आप इतनी तारीफ कर आये और उनके रामचरितमानस को संसारसाहित्य का मुकुट ठहरा प्राये से क्यों?

लेखकों ने जिस पृष्ठ पर देव के छन्दों की इतनी तारीफ की है उसी पृष्ठ पर, लगे हाथ ही, आप उनके विषय में लिखते हैं:---स० स०---१५