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हिन्दी-नवरत्न

विशेषता है कि गांव के नाम के पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध दोनों अंश मिलाकर एक ही जगह रख दिये गये हैं; बीच में स्पेस नहीं छोड़ा गया। जो अच्छे लेखक हैं वे व्यर्थ पिष्टपेषण नहीं करते।

हरिश्चन्द्र

लेखकों ने हिन्दी-नवरत्न की भूमिका में लिखा है:-"हम इन महाशयों को इनके किसी ख़ास समय में उत्पन्न होने के कारण तो नवरत्न में रखते नहीं हैं बरन् इनकी उत्तमता ही इनके इस मान का कारण है। तब इसी उत्तमता के अनुसार पूर्वापर-क्रम न रख कर काल-क्रम का सहारा लेना हमें युक्तिसङ्गत नहीं समझ पड़ा।" आपके इन 'उत्तम' और 'उत्तमता' आदि शब्दों को माया कुछ भी समझ में नहीं आती। जब तक आप अव्याप्ति और अति-व्याप्ति दोषों से रहित, तर्कशास्त्र-सम्मत, इनका लक्षण नहीं बतलाते तब तक कौन आपकी इस बात को मानेगा कि आपके उलितखित सभी लेखक या कवि-रत्न थे। हरिश्चन्द्र के विषय में आप लोग लिखते हैं:---" हम भाषा के नौ प्रसिद्ध और सर्वोत्तम कवियों में इनको भी समझते हैं"। समझिए। पर समझना एक बात है, समझाना दूसरी बात। यदि आपकी यह इच्छा हो कि आपकी बात और भी कोई मान ले तो हिन्दी के इतिहास में आप इस बात को युक्ति और तर्क द्वारा सिद्ध कीजिए कि कैसी और कितनी उत्तमता के कारण आपने मतिराम को भी रत्न समझा और हरिश्चन्द्र को भी। जिन हरिश्चन्द्र ने भिन्न भिन्न विषयों के कितने ही गद्यपद्यात्मक काव्य, नाटक और इतिहास आदि लिखे और जिनकी बदौलत हिन्दी-भाषा ने एक नया रूप पाया वे भी रत्न! और, पुराने पन्थ के पथिक, नायिका-भेद आदि पर बहुत ही कम