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गायकवाड़ की प्राच्य-पुस्तक-माला


वाक्यभेद, काव्य-योनि, कवि-समय आदि विषयों पर जो कुछ इन्होंने लिखा है, उपलब्ध ग्रन्थों में वह और कहीं नहीं पाया जाता। पुस्तक गद्य में है। गद्य सूत्र-सदृश, छोटे छोटे, वाक्यों में है। पर उदाहरण सब पद्यों में हैं। ये पद्य बड़े ही मनोहारी हैं। इसका दूसरा नाम कवि-रहस्य है। पुस्तकारम्भ में एक आलोचनात्मक विस्तृत भूमिका, अँगरेज़ी में, है। अन्त में २७ पृष्ठों में नोट हैं। और भी कितनी ही ज्ञातव्य बातें इस पुस्तक में हैं। आरम्भ में तालपत्र की पुस्तक के दो पत्रों का फोटो भी है। बड़े अच्छे टाइप में, मोटे चिकने कागज़ पर, पुस्तक छपी है। आकार बड़ा है। मूल्य २ रुपया है। इसका सम्पादन मिस्टर सी० डी० दलाल, एम० ए० और अनन्तकृष्ण शास्त्री ने किया है।

दूसरी पुस्तक नरनारायणानन्द महाकाव्य के प्रणेता धोलका (गुजरात) के चक्रवर्ती राजा वीरधवल के महामन्त्री वस्तुपाल हैं। यह पुरुष बड़ा विद्वान्, बड़ा दानी, बड़ा कवि वत्सल और बड़ा वीर था। यह स्वयं बहुत अच्छा कवि था। आबू के पहाड़ पर इसके बनवाये हुए मन्दिर अब तक इसके कृति-कलाप के परिचायक हैं। अनेक प्रशस्तियों और शिलालेखों में इसकी प्रशंसा लिखी हुई मिलती है। प्रबन्ध-चिन्तामणि और चतुर्विंशति-प्रबन्ध में भी इसका कृति-गान है। इसके सिवा सोमेश्वर, अरिसिंह, बालचन्द्र आदि ने भी इसकी महिमा का गान किया है। बालचन्द्र आदि ने वसन्त-विलास नामक एक महाकाव्य और जिन-हर्ष ने वस्तुपालचरित नामक एक ग्रन्थ लिख कर इसकी कीर्ति को अजरामर कर दिया है। इसका दूसरा नाम वसन्तपाल भी था। यह इतना उदार-हृदय था कि १८ करोड़ रुपया ख़र्च करके इसने हज़ारों, लाखों ग्रन्थ लिखवा कर जैन भाण्डारों में भरे थे। मुसलमानों पर भी इसकी कृपा थी। उनके लिए इसने ६४ मसज़िदें बनवा दी थीं। तालाब,