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पृथिवी-प्रदक्षिणा


ठीक ठीक प्रबन्ध शीघ्र न हो सकने के कारण हुई। तथापि देर से निकलने पर भी पुस्तक की मनोरञ्जकता और उपादेयता में विशेष कमी नहीं हुई। गुप्तजी के २१ महीने इस तरह खर्च हुए― “जहाज़ व रेल के सफर को छोड़ कर १५ दिन मिस्र में, छः मास इँगलिस्तान व आयरलैण्ड में, छः मास अमरीका में, अढ़ाई मास जापान में, दो मास कोरिया व चीन में, व तीन मास सिङ्गापुर के जेल में"। आपका इरादा योरप के अन्य देशों में भी घूमने का था। परन्तु योरप का पिछला घोर युद्ध उसी बीच में छिड़ गया जब आप इँगलिस्तान में थे। इस कारण उन देशों में आपका भ्रमण असम्भव हो गया।

ऊपर पुस्तक के जिन चार खण्डों के नाम दिये गये हैं उनमें से किसी भी खण्ड में इंगलिस्तान की यात्रा का उल्लेख नहीं। इसका कारण गुप्तजी ही के शब्दों में नीचे दिया जाता है―

“इन जगहों का पूरा हाल सात वर्ष बाद लिखना कठिन ही नहीं असम्भव है, क्योंकि मेरे पास इस सम्बन्ध की कुछ याददाश्त भी नहीं है। इँँगलिस्तान की हालत मैंने जानबूझ कर ही नहीं लिखी थी क्योंकि जो मनोवृत्तियाँ वहाँ उठती थीं उनका लिखना उस समय के राजनीतिक विचारों से मेरे लिए अनुचित था और मुझमें इतनी योग्यता भी न थी कि मैं उनको बचा कर लिख सकता। अतः उनके न लिखने का ही उस समय मैंने निश्चय किया था। इसी कारण इस पुस्तक में उनका कुछ विवरण नहीं दिया गया"।

कुछ बातें ऐसी हैं जो तर्क और युक्ति से सदोष नहीं प्रमाणित की जा सकतीं। तथापि जन-समुदाय उन्हें दोष समझता है, और, मनुष्य-स्वभाव कुछ ऐसा है कि वह उन्हें, यदि वे अपने में हों तो, छिपाने की चेष्टा करता है। इसीसे यदि कोई मनुष्य