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समालोचना-समुच्चय

में लगे। यदि ऐसा करना वह उचित न समझे तो कम से कम इतना तो अवश्य करे कि एक शाखा अपनी परिषद् की ऐसी बना दे जो केवल―ज्ञानान्वेषण (रिसर्च) के काम में लग। जावे"। पृष्ठ ६४, ६५

जिस समय गुप्त जी का जहाज़ लाल-सागर से जा रहा था उस समय उनके जी में यह आया कि लाल-सागर, पीत-सागर, श्याम-सागर और श्वेत-सागर नाम क्यों पड़े। पानी तो सभी का एक ही सा है। इस पर आपने अनुमान किया और शायद बहुत ठीक अनुमान किया कि मिस्र देश के छोर पर जो पर्वत हैं उनका रङ्ग लालिमा लिये हुए है। इसीसे इस समुद्र का नाम लाल या लोहित-सागर पड़ा होगा। इसी तरह चीन के पीताभ-निवासियों के वर्ण के अनुसार पीत-सागर, उत्तरी ध्रुव के आस पास के प्रदेशों में बर्फ की अधिकता के कारण श्वेत-सागर और पशिया माइनर तथा रूस की तत्तत्प्रान्तवतिनी भूमि का रङ्ग श्यामलता-युक्त होने के कारण श्याम-सागर नाम पड़े होंगे। इस प्रकार के विचार आपके हृदय में उत्पन्न होने के अनन्तर आपको पुराणों के दूध, दही, मधु आदि के समुद्रों का स्मरण हो आया। इस पर आप कहते हैं―

“ऐसी अवस्था में हमारे पुराणों में आये हुए क्षीरसागर, मधुसागर, दधिसागर इत्यादि भी क्यों न इसी प्रकार के नाम समझे जायँ।× × ×

“आज कल के नवशिक्षितों की शिक्षा इतनी बाह्य और ओछी होती है कि वे किसी गहराई में न जाकर ऊपर से ही अपनी वस्तुओं का तिरस्कार करने लगते हैं। यह शिक्षा-प्रणाली का दोष है, जिससे हमारे शिक्षित समाज को हिन्दू-सभ्यता, हिन्दू-साहित्य, हिन्दू-विज्ञान तथा हर प्रकार के हिन्दू-सिद्धान्तों की कितनी अनभिज्ञता है, यह सूचित होता है। किसी पर्य्यटक ने उत्तरीय