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यौही नहीं मिलती। अर्थात् कीमत देकर लोग तभी चीज़ों को मोल लेते है-तभी उनका बदलो करते है-जब उनमें ये दो गुणं विद्यमान होते हैं। इन गुणों के बिना कोई चीज़ क़ीमती नहीं हो सकती।

मेहनत से सब चीज़ों को क़ीमत बढ़ती है, पर यह कीमत का एकमात्र कारग नहीं। उसका प्रधान कारण उनके प्राप्त करने के लिए आदमियों की अभिलापा और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता है। ऐसा न होता तो हीरे और मामूली पत्थर पर बराबर मेहनत करने से दोनों की क़ीमत तुल्य हो जाती।

सब चीज़ों को फ़ीमत का निर्ब उनकी आमदनी और खप के तारतम्य पर अवलम्बित रहता है। किसी चीज़ के उस परिमाण को आमदनी कहते है जिसे लोग खुशी से बदले में देने पर राजी हों। इसी तरह किसी चीज़ के उस परिमाय को मांग या नप कहते हैं जिसे लोग बदले में लेने को तैयार हो। निल मँहगा होने से आमदनी अधिक और मांग कम हो जाती है और निर्ज सस्ता होने से आमदनी कम और मांग अधिक हो जाती है। इसी तरह आमदनी की अधिकता या मांग की कमी से निखं घटता है; और आमदनी की कमी और माँग की अधिकता से वह बढ़ता है। इस बढ़ाव घटाव में चीज़ों के उत्पादन-व्यय का बड़ा असर पड़ता है। जिस चीन के तैयार करने में जो खर्च पड़ता है उसी के आस पास उसका निलं रहता है-कभी वह कुछ इधर हो जाता है, कभी उधर । तैयारी के खर्च का नाम असल कीमत है और उसके कमी वेशी-पन का नाम बाज़ार दर है ।

कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका संग्रह हमेशा के लिए सीमावद्ध होता है; वह बढ़ाया नहीं जा सकता-जैसे पुराने चित्र, पुराने सिके आदि । इनकी कीमत खप पोर आमदनी के समीकर से ही निश्चित हो जाती है; उत्पादन-व्यय का उस पर असर नहीं पड़ता।

कुछ, चीज़ों का संग्रह सीमाबद्ध तो होता है, पर हमेशा के लिए नहीं । कुछ दिन बाद, यथासमय, वह बढ़ाया भी जासकता है । अनाज और खान से निकलनेवाली चीज़ों की गिनती इसी वर्ग में है। इन चीजों का निर्ख निश्चित करने में उत्पादन-व्यय का असर पड़ता है । इसका ख़याल रखकर खप और संग्रह के समीकरण से ऐसी चीज़ों का निर्ख निश्चित होता है।