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सम्पत्ति-शास्त्र।


बदले उसे उतनी चाँदी कभी न मिलेगी जितनी कि टकसाल में ढलने के समय उनमें थी। उस समय ना उसे उतनीही चाँदी मिलेगी जितनी कि सिक्कों में रह गई होगी। सम्भव है उसे उस समय १०० सिक्कों के बदले उतनीहीं चाँदी मिले जितनी कि पूरे बज़न के ९५ सिकों में होती है। यह उनके बदले की कीमत हुई । इसी बात को यदि दूसरी तरह कहें तो यो कह सकते हैं कि ९५ टकसाली सिफों को क़ीमत १०० चलतू सिक्के हुए । अर्थान् चलत सिकों की कीमत पांच टकसालो सिकों के बराबर घट गई। यदि चलन सिधा की कीमत का मुकाबला, साधारण चाँदी की कीमत से किया जाय, नो भो फल वही होगा। ऐसे मुकाबले से यही नहीं मालूम हो जाता कि सिकों को कीमत कम हो गई है या नहीं. किन्तु यह भी मालूम हो जाता है कि कितनी कम हो गई है।

यहां पर कोई यह कह सकता है कि चांदी या सोने के किसी निश्चित वजन को बहुत से टुकड़ों में बाँट देने से उसकी कीमत कम हो जाती है। अर्थात् एक टुकड़े को काटकर. सि के रूप में उसके अनेक टुकड़े कर डालने से यह कमी पैदा होती है । यह ठीक नहीं । सोमे-चांदी के टुकड़े करने से यदि उनकी कीमत कम हो जाती तो उनके सिक्के बनायेही न जाते। जिन धातुओं में सम-विभाज्यता का गुण होता है उन्हीं के सिक बनते हैं। और, सोने-चांदी में यह गुरण विद्यमान है। विभाग करने से उनकी कीमत कम नहीं होती । एक कुष्प श्री को यदि आप ४० बोतलों में भर दें नो क्या उसकी कीमत कम हो जायगी? क़ीमत तो तभी कम होगी जब उसका वज़न कम दो जायगा । सोना, चाँदी और बो. होरा-मोती नहीं हैं।

सिक ढालने का सबको अवतियार नहीं । कानून की रू से सिर्फ सर- का ही का सिके डालने का अवतियार है । यदि और कोई सिकें ढाले पार यह बात जाहिर हो जाय तो उसे सजा मिले । इस तरह के मुकदमे अकसर हुमा करते हैं । सिक दालने के लिए गवर्नमेंट को टकसाल खोलनी पड़ती है पर बहुत से मुलाजिम रखने पड़ते हैं। इसमें जो खर्च पड़ता है वह सरकार प्रजा से वसूल कर लेती है। पर प्रजा को मालूम नहीं पड़ता। एक रुपये की कीमत सोलह आने क़रार दो गई है। पर उसमें १६५ ग्रेन चाँदी और १५ ग्रेन तौबा आदि अन्य धातुओं का मेल है। अर्थात् २१ भाग चाँदी र १ भाग मेल है। यह १ भाग एक आना चार पाई के बराबर