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लगान।


लाने पर भी नये पेड़ पैदा हुआ करते हैं। पर खान के विषय में यह नहीं कहा जा सकता। इसीसे यह नियम खनिज पदार्थों के लिए नहीं चरितार्थ होता।

प्रत्येक देश में कुछ जमीन ऐसी खराब था ऐसी चे सभौते को होती है कि उसे आतने घाने से मजदूरी का खर्च और उसमें लगाई गई पूंजी का व्याज मुश्किल से वसूल होता है। ऐसी ज़मीन का कुछ भी लगान नहीं पा सकता। क्योंकि उसकी उपज से खर्चही मुश्किल से निकलता है, लगान किसके घर से आवेगा! और यदि ज़बरदस्ती लगान लगाया जाय तो ज़मीन परती पड़ी रह जायगी । ऐसी ज़मीन को "प्रेती को सबसे निकृष्ट जमीन" कहते हैं । उससे भी धुरी जमीन हो सकता है, पर वह जाती बोई नहीं जा सकती । क्योंकि उसमें खेती करने से घाटे के सिवा मुनाफर नहीं हैर सकता। हाँ यदि किसी कारण से अनाज महंगा हो जाय तो उसमें भी खेती हो सकेगी। अन्यथा नहीं।

ऊपर जा"क". "" पार "ग" नामक स्थानों की जमीन के लगान का तारतम्य दिखलाया गया उससे सूचित हुआ कि दो तरह की उपजाऊ जमीन की उपज में आ अन्तर होता है वहीं अन्तर लगान समझा जाता है। यदि एक खेत की उपज को कोमत ५० रुपये हो और दूसरे की सिर्फ २५ तो पहले खेत का लगान दूसरे खेत के लगान से दूना होगा। अच्छा पहले खेत का लगान तो इस तरह निश्चित किया गया; अब सवाल यह है कि दूसरे, अर्थात् कम उपजाक, खेत का लगान किस तरह ठहराया जाना चाहिए । इसके लिए खेती को अत्यन्त निकए जमीन की उपज से मुकाबला करना पड़ता है । अर्थात् सबसे निकट जमीन उपज को उस दूसरे खेत की उपज से घटाने से जो बचेगा वही उस खेत का लगान होगा। कल्पना कीजिए कि "" नाम का एक खेत है। उसकी जमोन सब से अधिक निकृष्ट है और उसकी उपज की क़ीमत १० रुपये से अधिक नहीं है । एक और खेत "न" नाम का है । उसको जमीन कुछ अधिक उपनाऊ है और साल में १६ रुपये का अनाज उसमें पैदा होता है । अतएव "," स्खेत की उपज १६ रुपये में से "," खेत की उपज १० रुपये निकाल डालने से रुपये बचते हैं । घस यही ६ रुपये "न" खेत का लगान हुआ। रिकार्ड्स नामक पक सम्पत्तिशास्त्र के प्राचार्य होगये हैं। उन्हीं का निकाला हुआ यह सिद्धान्त है । प्रतपच इसका नाम "रिकार्डों का सिद्धान्त है।